आल्ह छ्न्द
आल्ह छ्न्द[ १६+१५=३१ अंत गाल =२१
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चलें नहाने गंगा जमुना, ईश्वर का प्यारा वरदान/
संगम तट पे भीड़ देखि के, बुढऊ आज भए परेशान/
लेकर बोरी बिस्तर भागे , जय जय गंग बचावा जान /
अइसा भीड़ कबहूं न देखे, विधिना कहाँ करी अस नान /[स्नान]
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राजकिशोर मिश्र ‘राज’
रविवार ३१/०१/२०१६