कविता

कविता

गाँव के सन्नाटे में

जब खिलती है चाँदनी रात
कौन पूछे ?किससे कुशलात
खिलखिलाते आँगन
हो गये हैं मूर्छित
पगडंडियां झाँक आतीं हैं
उस मोड़ तक
जहाँ से हँसी के कहकहे इठलाते हुए समा जाते थे
गाँव में
घरों ने झुका लिये हैं सिर
घुटनों के बीच में
सोचते हैं उदास हलधर आखिर क्यों खरीदी पढ़ाई
आनाज बेचकर ?
चौखट पर टिमटिमा रहे हैं
बूढ़े दीपक
अकेलेपन से चूर-चूर होकर
वे बूझना चाहते लेकिन
कतरा कर निकल जाती है हवा भी
अब त्योहारों पर
नहीँ सजते है घर, बजती हैं
फोन की घन्टियां
आँखों पर धुंधले हो उठते हैं
दो टुकडे काँच के
झुर्रियां थोड़ी पसर कर
पुनः सिमट जाती हैं.

— कल्पना मनोरमा

कल्पना मनोरमा

जन्म तिथि 4/6/1972 जन्म स्थान – औरैया, इटावा माता का नाम- स्व- श्रीमती मनोरमा मिश्रा पिता का नाम- श्री प्रकाश नारायण मिश्रा शिक्षा - एम.ए (हिन्दी) बी.एड कर्म क्षेत्र - अध्यापिका प्रकाशित कृतियाँ – सारंस समय का साझा संकलन,जीवंत हस्ताक्षर साझा संकलन, कानपुर हिंदुस्तान,निर्झर टाइम्स अखबार में,इंडियन हेल्प लाइन पत्रिका में लेख,अभिलेख, सुबोध सृजन अंतरजाल पत्रिका में। हमारी रचनाएँ पढ़ सकते हो । लेखन - स्वतंत्र लेखन संप्रति - इंटर कॉलेज में अध्यापन कार्य । सम्मान - मुक्तक मंच द्वारा (सम्मान गौरव दो बार )भाषा सहोदरी द्वारा (सहोदरी साहित्य ज्ञान सम्मान) साहित्य सृजन - अनेक कवितायें तुकांत एवं अतुकांत,गजल गीत ,नवगीत ,लेख और आलेख,कहानी ,लघु कथा इत्यादि ।

One thought on “कविता

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कविता अच्छी लगी .

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