गीत : माँ
स्वर्ग सातों पड़े रहते थे पाँव में
चैन दुनिया का था ममता की छाँव में
रब हो जाता था मुझपे खुद मेहरबां
जब मुझे देखकर मुस्कुराती थी माँ
समझ जाती थी सब सुगबुगाहट से वो
जाग जाती थी हल्की सी आहट से वो
गम का रहता था बाकी ना नाम-ओ-निशां
जब मुझे देखकर मुस्कुराती थी माँ
मेरी सारी बला अपने सर पे लिए
लड़ती थी दुनिया भर से वो मेरे लिए
मुझे किस्मत पे अपनी था होता गुमां
जब मुझे देखकर मुस्कुराती थी माँ
उसके गुस्से में भी ढेर सा प्यार था
झिड़कियों में दुआओं का भंडार था
सहरा भी लगने लगता था इक गुलिस्तां
जब मुझे देखकर मुस्कुराती थी माँ
क्यों गई माँ यूँ तनहा मुझे छोड़कर
साथ रहने के वादे सभी तोड़कर
वक्त वो अब मैं दोबारा ढूँढू कहां
जब मुझे देखकर मुस्कुराती थी माँ
रब हो जाता था मुझपे खुद मेहरबां
जब मुझे देखकर मुस्कुराती थी माँ
— भरत मल्होत्रा
बहुत अच्छा गीत, भरत जी !