वीर सपूत के नाम एक पत्र
अहो भाग्य !हे वीर पुरुष !इस धरती पर जो तुम आये।
देश प्रेम से ओत प्रोत नव गीत तुम्ही ने तो गाये ।
मरता है केवल शरीर पर सैनिक नहीं मरा करते ।
बलिदानी की शौर्य कथा पर आंसू नहीं बहा करते ।
नहीं समय है, कहीं बैठ कर रोकर शोक मनाने का ।
चलो पताका लिए हाथ में व्यर्थ न समय गंवाने का ।
काव्य विधा के सभी रसों में प्रिय तो मुझे सभी रस हैं ।
लिखो काव्य में शौर्य कथाएं प्यारा तुम्हें वीर रस है ।
हँसते हँसते हास्य बिखेरो तूफानों से टकराओ ।
करो कलम से वार शत्रु पर, विजय पताका फहराओ
भरो जोश, अपनी सरहद पर निशि-दिन डटे जवानों में ।
जागें सुन कर युवा सभी अब खेतों औ’ खलिहानों में
छेड़ो ऐसी तान देश के युवा बनें सीमा-प्रहरी
बूढ़े बच्चे हुंकार उठें ,विवश सुने दुनिया बहरी
सीना तान बढ़ें आगे दुश्मन पर करें वार ऐसा
चूर-चूर हो मद इतना व्यवहार करे मानव जैसा ।
— लता यादव
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हआदरणीया लाजवाब सृजन के लिए बधाई एवम् नमन
प्रिय सखी लता जी, वीर रस की अद्भुत काव्यमय प्रस्तुति.
प्रिय सखी लता जी, वीर रस की अद्बुत काव्यमय प्रस्तुति.