शब्दों का नकारात्मक व सकारात्मक पहलू
शब्द ,वो है जो अगर सोच-समझकर ना बोले जाएँ तो बवाल मचा सकते हैं । शब्द वो हैं, जो किसी को तीखे तीर से भी गहरे घाव दे सकते हैं तो किसी दुखी हृदय के लिए मरहम भी बन सकते हैं । ‘तोल-मोल के बोल ‘ और ” ऐसी वाणी बोलिए ,जो मन का आपा खोय । औरन को शीतल करे,आपहूँ शीतल होय ॥ ” ये सब हमारे संत और ऋषि -मुनियों ने यूँ ही नहीं कहा । शब्द जितने प्यार से बोले जायेंगे उतना ही सकारात्मक प्रभाव डालेंगे और जितने कडवे और जहरीले होंगे उतना ही नकारात्मक प्रभाव । द्रोपदी के तीखे और व्यंगात्मक शब्दों का ही तो कमाल था जिसने महाभारत युद्ध रच दिया । हमें जब भी कुछ बोलना हो तो उसमें दिल और दिमाग दोनों का इस्तेमाल करना चाहिए । दिमाग से हर शब्द को तौलकर और दिल से उनमें प्यार और नम्रता भर कर बोलेंगे तो हमारा बोला गया हर शब्द ना केवल सामने वाले पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा बल्कि हम खुद भी अच्छा महसूस करेंगे । अगर यकीं ना हो तो दोनों तरह से बोलकर देख लीजिये ,खुद पर प्रभाव तो तुरंत पता चल जाएगा ,अच्छा बोलकर हम अपने अंदर शांति महसूस करेंगे और और बुरा बोलकर अशांत रहेंगे ।
इन सबके लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है की हमारे विचार शुद्ध और सात्विक हों क्योंकि हमारे विचार ही शब्द बनकर जुबान और लेखनी से निकलते हैं । हम दूसरों से हमेशा अच्छा सुनना ही पसंद करते हैं,तो फिर हम क्यों बुरे शब्दों का इस्तेमाल करें जिस से सामने वाले को और स्वयं को भी बुरा लगे । शब्द को इस तरह से इस्तेमाल करना चाहिए मानो वो बेहद कीमती हैं और माना जाए तो वो कीमती ही होते हैं ,अपनी कीमती वस्तु को हम कितना सजा-सँवार कर रखते हैं ,उसी तरह हमें अपने शब्दों को भी नम्रता और प्यार से सजा-संवार कर अपने हृदय से निकलना चाहिए । हमारे ये शब्द ही तो हैं जो एक तरफ तो किसी में इतना उत्साह भर सकते हैं की वो चाहे शारीरिक तौर पर कितना भी कमजोर हो पर किसी भी पहलवान पर भारी पड़ जाए और एक तरफ इतना हतोत्साहित कर सकते हैं की बलवान से बलवान इंसान का आत्मविश्वास डिग जाए।
शब्द देते प्रेरणा
किसी को जीने की,
यही शब्द बन जाते
कभी तीक्ष्ण कटार
और देते घाव
जो नहीं भरता कभी.
कसो शब्दों को
अंतस की कसौटी पर
अभिव्यक्ति से पहले,
मुंह से निकले शब्द
नहीं आते वापिस
चाहने पर भी !!!
अंत में श्री अशोक जी वर्मा की ग़ज़ल की दो लाइन कहना चाहूँगी
“घायल नहीं था मैं किसी तीर-ओ-कमान से !
वो शब्द बेरहम था जो निकला जुबान से !!”
किसी ने ये भी सही कहा है की —
” शब्द मेरी मर्यादा, शब्द मेरा गरूर
शब्द मेरी आत्मा, शब्द मेरा प्यार
शब्द ही प्रतिबिंब, शब्द ही संसार
शब्द ही औषधि और शब्द ही प्रहार
शब्द मेरी आत्मा, शब्द मेरा प्यार
शब्द ही प्रतिबिंब, शब्द ही संसार
शब्द ही औषधि और शब्द ही प्रहार
शब्द तीर भी हैं शमशीर भी है
शब्द वचन भी है इबादत भी है
शब्द मंत्र भी है तो आशीष भी है |”
आप सभी से अनुरोध है की सदैव सोच समझ कर ही बोलें । अपनी बोली से कभी भी किसी का भी दिल न दुखाये ।्
@ शशि शर्मा ‘खुशी’
शशि जी ,आप ने जो जो लिखा ,अक्षर अक्षर मोती हैं .
प्रिय सखी शशि जी, अपने शब्दों को भी नम्रता और प्यार से सजा-संवार कर अपने हृदय से निकलना चाहिए, अति सुंदर.