सार छ्न्द
सार छ्न्द=१६,-१२ यति = अंत=२२
कल कल करके नदियाँ बहती – सागर की मन रानी/
चल-चल कंकड़ पत्थर सहती – सरिता नीर सयानी/
भरि-भरि धारा झूमे जैसे , आई प्रेम दिवानी
उमडि-घूमडि के बादल देखे , पहन चुनर अस धानी/
राज विभावरि प्रेम न भूले- चाँद खोज मन रानी /
अस अड़वन्गी भोले बाबा , गंग धरा मन पानी /
उमडि-घुमडि के जटा बीच मे, निकल पड़ी जब गंगा/
कल-कल करती चलती गंगा, भंवर बीच मन रंगा/