कविता

कविता : तुम्हारी निशानी

और क्या है मेरे पास
बस तुम्हारी चंद यादें
और.
मेरी थोडी ख्वाहिशें
मेरे डायरी मे तो
कोई सुखे गुलाब की
कुछ पंखुडिया तक नही
जो जाने से पहले वापस कर दुँ
कुछ थोडे से उम्मीद तुमने दी थी जो
वो तो तुमने खुद ही ले ली
अब तुम्हीं बताओ ना
यादें कैसे वापस करते है
ख्वाहिशें कैसे मरती है……

— साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)