कविता : तुम्हारी निशानी
और क्या है मेरे पास
बस तुम्हारी चंद यादें
और.
मेरी थोडी ख्वाहिशें
मेरे डायरी मे तो
कोई सुखे गुलाब की
कुछ पंखुडिया तक नही
जो जाने से पहले वापस कर दुँ
कुछ थोडे से उम्मीद तुमने दी थी जो
वो तो तुमने खुद ही ले ली
अब तुम्हीं बताओ ना
यादें कैसे वापस करते है
ख्वाहिशें कैसे मरती है……
— साधना सिंह