कहाँ खो गई हो इस नभ में।
कहाँ खो गई हो इस नभ में।
कहा चली हो इस जीवन में।
दीख जा तारों के के बीच में।
दीख जा जुगनू के बीच में।।
चमकते हुए चाँदनी रातों में।
टिमटिमाते तारों के बीच में।
इन्द्रधनुष की— सतरंगी में।
दीख जा बनकर जीवन में।।
झिलमिलाते—-कनकनी में।
घास के नोक— पर बैठे हुए,
चहकते सुबह की– बेला में।
ओढे हुए किरणों की चादर में।
बलखाते हुए—– हवाओं में।
लहराते हुए—– फिजाओं में,
फैले हुए खेत की हरियाली में।
बस जा आकर मेरे हृदय में।।
लहर की तरह— अंगड़ाई में।
धारा बनकर—— गहराई में।
नदी के दो किनारों के बीच में।
प्रवाहमय बनकर- जीवन में ।।
@रमेश कुमार सिंह /२०-१२-२०१५
बढ़िया कविता!
आभार आदरणीय!!
अच्छी कविता
शुक्रिया आदरणीया!!