काहिल
जब घर बैठे प्रसाद मिले तो कोई मंदिर क्यों जाए
जब मस्त बयार बहे तो पंखा कोई क्यों हिलाए
काम कभी कोई रूका नहीं फिर क्यों काम करते जाएं
ऐसा करें कि काम कोई करे और हम ईनाम पाएं
जब बारिश में ही भीग लिए तो फिर क्यों नहाएं
दूसरे चलकर आएं हम तक फिर हम उठकर क्यों जाएं
अरे छोड़ो यारों! हम नहीं जाते बॉस बुलाए तो बुलाए
उसे इंतजार करने दो वरना किसी और से काम कराए
ऑफिस जल्दी आए नहीं तो क्या, क्यों न घर जल्दी जाएं
हलचल गर पानी में है ही तो कंकड क्यों उठाएं
फल तो गिर ही जाते हैं फिर हम क्यों पेड पर चढ़ जाएं
गलती किसी ने पकड़ी नहीं तो क्यों हम बताने जाएं
अच्छा-खासा सब चल रहा हो तो फोकट में गाली क्यूं खाएं
रिश्वत का मौका मिला नहीं, तो क्यों न ईमानदार कहलाएं।
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