बाल गीत : कानों का कन टोपा बोला
शीत लहर ने कमरे में भी,
ठंडक का मीठा रस घोला।
कानों का कन टोपा बोला।
गरम चाय के दौर चले तो,
आई मुँगौड़ी दौड़ी दौड़ी।
दादाजी बचपन की बातें,
लगे ठोकने लंबी चौड़ी।
खाओ मुँगौड़ी के संग थोडा,
आलू मटर टमाटर छोला।
कानों का कन टोपा बोला।
खिड़की बंद, बंद दरवाजे,
फिर भी कुल्फी -कुल्फी कपडे।
जमा हुआ घी बरफ सरीखा,
अम्मा रोटी कैसे चुपड़े।
ठण्ड बहुत है कहकर दादी,
ने मुन्नी का हाथ टटोला।
कानों का कन टोपा बोला।
नहीं जाएंगे पापा आफिस,
दादाजी ने निर्णय थोपा।
बच्चे घर में बंद रहेंगे,
दादीजी ने ऑर्डर ठोका।
दरवाजा ग्वाले ने पीटा,
अम्मा ने मुश्किल से खोला।
कानों का कन टोपा बोला।
— प्रभुदयाल श्रीवास्तव
आदरणीय प्रभुलाल जी यह बालगीत मुझे बहुत ही सुंदर लगा. इस में गेयता गजब की है. बधाई. आप को .