सुबह शाम पड़ती है भैया ठंड कड़ाके की। और रात की ठंडक तो है, धूम धड़ाके की। सुबह-सुबह की हालत तो मत, पूछो रे भैया। सी-सी करते बदन काँपता, है मोरी दैया। राह कठिन सच में होती है, हाय बुढ़ापे की। मफलर स्वेटर काम न आये, दाँत बजे कट-कट। अदरक वाली चाय पी रहे, लोग […]
Author: *प्रभुदयाल श्रीवास्तव
बाल कविता – असली फूल दिखाओ
माँ गुड़हल का फूल कहाँ है,लाकर मुझे दिखाओ।चित्रों वाले फूल दिखाकर,मुझको न बहलाओ।हमनें बस गेंदा गुलाब के,देखे फूल असल के।बाकी तो पुस्तक में देखे,झूठे और नकल के।चंपा और चमेली के कुछ,फूल कहीं से लाओ।सदा सुहागन ,बारह मासी,नाम सुने हैं मैनें।आक ,धतूरे के, सुनते हैं,होते फूल सलोने।किसी गाँव में चलकर इनकी,सुन्दर छबि दिखाओ।कहते हैं पीला कनेर […]
मजे लिए सत्तू के
झुन्ने ने,मुन्ने ने,मजे लिए सत्तू के। दादी जो लाई थी,गांव से,बत्तू के। महक बड़ी सोंधी सी, रूप भी निराला था। बच्चों को सत्तू अब, झट मिलने वाला था। मस्ती में नाच उठे, सब के सब लट्टू से। कांच के कटोरे में , मम्मी ने घोला था। देखा जब पापा ने , उनका मन डोला था। […]
हम दादाजी के चमचे हैं
धोती हैं, कुरता,गमछे हैं,हम दादाजी के चमचे हैं। जब छड़ी कहीं गुम जाती है,वे छड़ी -छड़ी चिल्लाते हैं।हम ढूंढ -ढाँढ कर फौरन हीजा उनके हाथ थमाते हैं,वह बचपन से ही सबके हैं,हम सब छुटपन से उनके हैं। हम……! ऐनक रखकर के इधर उधर,वे भूल हमेशा जाते हैं।जब बहुत देर तक न मिलती,तो हम सब पर […]
बाल कविता – खुशबू का उपहार
फूल के बिस्तर पर तितली ने, किया बहुत आराम। कहा फूल ने बहना तितली, जाओ करो कुछ काम। भौंरों और तितलियों की है, लंबी लगी कतार। उनको भी थोडा दे दूँ मैं, खुशबु का उपहार।
बाल गीत – भैया से बोलो
मम्मीजी भैया को बोलो, नहीं चलाये टी. वी.तेज। कभी- कभी धीमा कर देता, कभी तेज करता आवाज़। छोड़ पढाई व्यर्थ काम में, समय कर रहा है बर्बाद। खड़ी परीक्षा सिर पर है वह, टी. वी. से अब करे परहेज। पिछले दो घंटे से अविरल, देख रहा जाने क्या चीज। कार्टून हैं शायद कोई, बेढंगे से […]
बाल गीत – ई मेल से धूप
हमें बताओ कैसे भागे,आप रात की जेल से। सूरज चाचा ये तो बोलो,आये हो किस रेल से। हमें पता है रात आपकी,बीती आपाधापी में। दबे पड़े थे कहीं बीच में,अंधियारे की कापी में। अश्व आपके कैसे छूटे?,तम की कसी नकेल से। पूरब की खिड़की का परदा, रोज खोलकर आ जाते। किन्तु शाम की रेल पकड़कर,बिना […]
लघुकथा – हे आत्मा तू संतुष्ट हो जा
दहाड़ की आवाज सुनकर वे बाहर आ गईं। वे यानि कि बड़ी बहू मतलब श्याम देवी, गृह स्वामिनी रमादेवी के ज्येष्ठ पुत्र किशोर की पत्नी। बाहर खड़ी मिसेस हजेला बुक्का फाड़कर चिल्ला रहीं थीं। मिसेस हजेला श्याम देवी की परम प्रिय पड़ोसन है। अगल बगल में मकान, एक की दीवार से दूसरे का फासला बामुश्किल […]
व्यंग्य – घुसपैठ का चतुर्दिक अंदेशा
यदि आप सोचते हैं कि मैं भारतीय क्षेत्र में पाकिस्तानियों अथवा तालिबानी घुसपैठियों के सम्बन्ध में लिखने जा रहा हूँ तो आप शत प्रतिशत मुगालते में हैं। उस घुसपैठ पर तो सारे देश कि नज़र है क्योंकि यह तो राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न है। मैं उस घुसपैठ को सुधि पाठकों के बीच प्रस्तुत कर रहा […]
बाल गीत बचपन फिर बेताब हो रहा
गुड़ की लैया नहीं मिली है, बहुत दिनों से खाने को। बचपन फिर बेताब हो रहा, जैसे वापस आने को। आम ,बिही ,जामुन पर चढ़कर, इतराते बौराते थे। कच्चे पक्के कैसे भी फल, तोड़ तोड़ कर खाते थे। मन फिर करता बैठ तराने किसी डाल पर गाने को। मन करता है फिर मुढ़ेर से, कूद […]