बाल कविता

सूरज रोज निकलता है

सुबह निकलकर दिन भर चलता,
हुई शाम तो ढलता है ।
सूरज रोज निकलता है जी,
सूरज रोज निकलता है ।

पूरब से हँसता मुस्काता।
सोना बिखराता आता |
किरणों के रथ पर बैठाकर,
धूप ,धरा पर भिजवाता |
धूप हवा की सरस छुअन से,
फूल डाल पर खिलता है जी |
सूरज रोज निकलता है |

पंख खुले तो दाना पानी,
लेने पंछी चल देते |,
पाकर धूप -हवा- पानी ही,
तरुवर मीठे फल देते |
भौंरों, तितली, चिड़ियों को भी,
फूलों से रस मिलता है जी |
सूरज रोज निकलता है |

बादल, कोहरा, धुंध, प्रदूषण,
मग में बाधा बन जाते |
गगन-वीर उस सूरज को पर,
पथ से डिगा नहीं पाते |
बिना डरे चलते जाना है,
सबसे पल-पल कहता है जी |
सूरज रोज निकलता है |

— प्रभुदयाल श्रीवास्तव

*प्रभुदयाल श्रीवास्तव

प्रभुदयाल श्रीवास्तव वरिष्ठ साहित्यकार् 12 शिवम् सुंदरम नगर छिंदवाड़ा म प्र 480001