बाल गीत : होली पर बिटिया रानी
सुबह सुबह से बिटिया रानी,
गाल फुलाये बैठी है
उसे चाहिए लाल गुलाबी,
पीले रंग की पिचकारीं।
गए साल कीं व्यर्थ हुईं तो,
फेकीं कचरे में सारीं।
पापा नयीं नहीं लाये हैं,
इस कारण से रूठी है।
उसे चाहिए नीना अंटी,
की चुनरी के रंग वाली।
या जिस रंग का सूट पहनती,
मोहन अंकल की साली।
जीभ चल रही है गुस्से में,
जैसे चलती कैंची है।
उसे चाहिए गांधी बाबा,
की टोपी के रंग जैसी।
या जिस रंग की नेहरू चाचा,
पहने हैं जाकिट वैसी।
आगे पीछे घूम रही है,
मम्मी के संग चेंटी है।
सदाचार के सब रंगों से,
दिन भर होली खेलेगी।
गांठ बंधी जिनसे कई दिन से,
इस होली पर खोलेगी।
प्रेम प्रीति की दादाजी से,
मिली बिरासत सेंती है।
सुबह सुबह से बिटिया रानी,
गाल फुलाये बैठी है
— प्रभुदयाल श्रीवास्तव
आदरणीय प्रभुलाल जी आप के बालगीत वैसे भी शानदार होते है. जिन में उपदेश्य छिपा होता है.