लघुकथा : छोटी सी ख़ुशी
मोहनलालजी लड्डू बाँट रहे हैं।
“क्या बात है मोहन भैया किस ख़ुशी में लड्डू बँट रहे है,कोई विशेष बात है क्या?”सोहन चहक रहा था।
“बस यूँ ही तीन दिन से पेट साफ़ नहीं हो रहा था।आज हो गया है तो बड़ी राहत मिली। मन प्रसन्न है तो सोचा लड्डू ही बाँट दूँ। मगर सोहन भाई आपके हांथों में भी लड्डुओं की टोकनी!आप क्यों बाँट रहे हैं?”
“यार चार दिन से आलू खा रहा था पेट भारी हो रहा है।आज बेटा पालक की भाजी लाया है। यह भाजी मुझे बहुत पसंद है। बहुत खुश हूं ।आज भाजी खाने मिलेगी। बस इसीलिए लड्डू…..।…”
छोटी सी सही पर खुशियाँ तो हैं ही, मना लो, अभी आज। क्या मालूम कल मौका मिले न मिले।
— प्रभुदयाल श्रीवास्तव
आदरणीय प्रभुलाल जी आप ने सब्जियों के बहाने शानदार लघुकथा लिखी है. बधाई .