हम सीखना चाहें तो
हम सीखना चाहें तो
अपनी परछाई भी हमें बहुत कुछ सिखाती है,
कभी आगे कभी पीछे हो जाती है,
कभी बौनी कभी लंबी हो जाती है,
कभी छोटी कभी बड़ी हो जाती है,
कभी ऊपर कभी नीचे हो जाती है,
कभी दांएं कभी बांएं हो जाती है,
कभी हिलती है कभी स्थिर हो जाती है,
इस तरह वह हमें लचीला होना सिखाती है,
परिस्थिति के अनुसार ढलना सिखाती है,
जीवन का ग्राफ भी ऐसे ही परिवर्तित होता रहता है,
यह हमारी परछाई ही हमें सिखाती है.
प्रिय गुरमैल भाई जी, प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया.
जीवन का ग्राफ भी ऐसे ही परिवर्तित होता रहता है,
यह हमारी परछाई ही हमें सिखाती है. यह univarsal truth ही तो है ,परछाई की तरह जिंदगी का ग्राफ ऊंचा नीचा होता रहता है .