कविता

हम सीखना चाहें तो

हम सीखना चाहें तो
अपनी परछाई भी हमें बहुत कुछ सिखाती है,
कभी आगे कभी पीछे हो जाती है,
कभी बौनी कभी लंबी हो जाती है,
कभी छोटी कभी बड़ी हो जाती है,
कभी ऊपर कभी नीचे हो जाती है,
कभी दांएं कभी बांएं हो जाती है,
कभी हिलती है कभी स्थिर हो जाती है,
इस तरह वह हमें लचीला होना सिखाती है,
परिस्थिति के अनुसार ढलना सिखाती है,
जीवन का ग्राफ भी ऐसे ही परिवर्तित होता रहता है,
यह हमारी परछाई ही हमें सिखाती है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “हम सीखना चाहें तो

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    जीवन का ग्राफ भी ऐसे ही परिवर्तित होता रहता है,

    यह हमारी परछाई ही हमें सिखाती है. यह univarsal truth ही तो है ,परछाई की तरह जिंदगी का ग्राफ ऊंचा नीचा होता रहता है .

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