क्षणिका

असली गरीबी

हम क्यों सोचते हैं
कि हम गरीब हैं
शायद हमने देना नहीं सीखा
हमारा चेहरा एक मुस्कान दे सकता है
हमारा मुंह किसी की प्रशंसा कर सकता है
या बोल सकता है दो मीठे बोल
दूसरों को सुकून पहुंचाने के लिए
हमारे हाथ किसी ज़रूरतमंद की सहायता कर सकते हैं
वास्तव में हम में से कोई भी गरीब नहीं हैं
मन की गरीबी ही असली गरीबी है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

9 thoughts on “असली गरीबी

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    वाहह लाजवाब बहन जी सुंदर सृजन के लिए बधाई

    • लीला तिवानी

      प्रिय राजकिशोर भाई जी, आपकी प्रतिक्रिया भी लाजवाब है.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी बात, बहिन जी ! जो मन से गरीब हैं वे धन के अमीर होने पर भी गरीब ही माने जायेंगे.

    • लीला तिवानी

      प्रिय विजय भाई जी, आपने बिलकुल ठीक कहा है.

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है.

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, ब्लॉग का संज्ञान लेने, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    वास्तव में हम में से कोई भी गरीब नहीं हैं

    मन की गरीबी ही असली गरीबी है. गेहराई की बातें ! गरीबी में लेना ही होता है ,अमीरी में दे सकने की क्षमता होती है , कुछ लफ़्ज़ों से अगर किसी को ख़ुशी दे सकें तो वोह अमीरी ही तो है .

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी नीतू जी, बहुत-बहुत शुक्रिया.

    .

  • नीतू सिंह

    अच्छे विचार हैं

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