गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अच्छा लिखना खेल नहीं
ये बस शब्दों का मेल नहीं।
कुछ डब्बे जोड़ो चल दो
बँधु ये कोई रेल नहीं।
पन्ने पन्ने हैं रंग डाले
लेकिन शब्दों का मेल नहीं।
महादेवी, प्रसाद, औ निराला
लिखते अनुभव कोई खेल नहीं।
खुद मथ कर खुद ही को जो
पाया वो कोई मेल नहीं।
रच रच रच डाला जिसको
वो ही रचना है गुलेल नहीं।
चल मन कहीं छाँव ढूंढ़े
जहाँ शब्दों की हो ठेल नहीं

— अंशु प्रधान

2 thoughts on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल !

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल !

Comments are closed.