कोई
मैं बहुत दूर निकल आई हूँ
कोई घर पहुंचा दो
थक गई हूँ बहुत
आया की तरह कोई पाँव दबा दो
सोई नहीं सदियों से हूँ मैं
मां की तरह कोई लोरी सुना दो
नसें कसी, बरसों से हंसी नहीं
भाई की तरह कोई उल्लू बना दो
बड़ी बहुत हुई, अब छोटा बना दो
और पिता के कंधो पर कोई चढ़ा दो
मंजिलों से बहुत आगे निकल आई हूँ
मुझे वापस कोई वहीं पहुँचा दो
लौटना मुमकिन नहीं जहां की चाह है
भगवान की तरह कोई मुमकिन बना दो।
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वाह वाह ! बहुत खूब !!
धन्यवाद
बड़ी बहुत हुई, अब छोटा बना दो
और पिता के कंधो पर कोई चढ़ा दो, बहुत खूब .
धन्यवाद
बहुत सुंदर बचपन की यादें!!
बहुत सुंदर बचपन की यादें!!
शुक्रिया