कविता

कोई

मैं बहुत दूर निकल आई हूँ

कोई घर पहुंचा दो

 

थक गई हूँ बहुत

आया की तरह कोई पाँव दबा दो

 

सोई नहीं सदियों से हूँ मैं

मां की तरह कोई लोरी सुना दो

 

नसें कसी, बरसों से हंसी नहीं

भाई की तरह कोई उल्लू बना दो

 

बड़ी बहुत हुई, अब छोटा बना दो

और पिता के कंधो पर कोई चढ़ा दो

 

मंजिलों से बहुत आगे निकल आई हूँ

मुझे वापस कोई वहीं पहुँचा दो

 

लौटना मुमकिन नहीं जहां की चाह है

भगवान की तरह कोई मुमकिन बना दो।

*****

*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल [email protected]

7 thoughts on “कोई

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब !!

    • नीतू सिंह

      धन्यवाद

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बड़ी बहुत हुई, अब छोटा बना दो

    और पिता के कंधो पर कोई चढ़ा दो, बहुत खूब .

    • नीतू सिंह

      धन्यवाद

    • नीतू सिंह

      शुक्रिया

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