ग़ज़ल : ज़माने गुज़र गये
सस्ताई के वो हाए. ज़माने गुज़र गए,
टमाटर प्याज खाए ज़माने गुज़र गए
खा रहा हूँ रोटी नमक के साथ अब तो,
हरी सब्जियाँ पकाए. ज़माने गुज़र गए
बनिया भी माँगता है अब पैन कार्ड मुझसे,
होटल में खाना खाए ज़माने गुज़र गए
आलू लिए तो गोभी के पैसे नहीं बचे,
हमें गोभी आलू खाए ज़माने गुज़र गए
दूध का बिल देख के आ गया मुझे चक्कर,
पनीर घर में लाए .ज़माने गुज़र गये
चमचों ने सारा मक्खन लगा दिया नेता को,
ब्रेड पे बटर लगाए. ज़माने गुज़र गए
घर में पकाई जाती है पानी में अब तो दाल,
घी वाली दाल खाए. ज़माने गुज़र गए
इक दौर था कि होती थी दावतें हर रोज,
मेहमान को बुलाए ज़माने गुज़र गए
महंगाई डायन खा गई घर का मेरे राशन,
मुझे पेट भर के खाए ज़माने गुज़र गए
— भरत मल्होत्रा
हा हा हा , एक बात जरुर है ,अब पिआज नहीं तो आँखों से पानी भी नहीं निकलेगा .
हा हा हा , एक बात जरुर है ,अब पिआज नहीं तो आँखों से पानी भी नहीं निकलेगा .
वाह आदरणीय बहुत खूब!!!