आज की कुरीतियाँ
क्योंकि आज, भाभी की बेटी जो महज १३ साल की थी, उसे बिन ब्याहे “वो” वाली उल्टियाँ हो रहीं थी.. भाभी, जो हमेशा अपनी ननद को उसके बांझपन के कारण ताने मारती रहती थी.. भाभी का मनीषा को सालों से ताने मारते रहना ये भी एक तरह का अपच ही था जो आज इस तरह से उलट गया… भाभी मन ही मन ये सोच कर दुखी हो रही थी उसे लगा आज ननद की बारी हैं , अपनी भाभी के सारे ताने “ब्याज-सहित” लौटाने की…. पर ननद मनीषा खुश नहीं थी, क्योंकि उसे अपने भाई से सच्चा प्यार था.. माँ ने अपने “आखिरी वक्त” में तीनों भाई-बहनों से वचन लिया था कि वे एक दूसरे से कभी दूर नहीं होंगे.. चूंकि माँ को वचन दिया था, सिर्फ इसलिए ही नहीं, बल्कि उसे तो सचमुच अपने भाई बहनों से प्यार था.. फिर भले ही “उन्हें” मनीषा से प्यार हो… या…न हो.. बस, यही वजह थी कि आज मनीषा खुश नहीं थी…..
विवाह के बाद लड़कियाँ अपने मायके से दूर हो जाती हैं, पर मायका तो मायका ही है ना..! भला कौन लड़की अपने मायके की बदनामी को देख-सुन सकती है..? इसी कारण वह हमेशा भैया-भाभी को टोकती थी…… लड़कियों का यूँ लड़कों से ज्यादा घुलना मिलना अच्छा नहीं, लेकिन वे दोनों हमेशा उसी को वाद-विवाद से परास्त कर देते थे… उनका तर्क होता था कि “तेरी अपनी कोई औलाद तो है नहीं, इसीलिए तुझे कोई अनुमान नहीं है कि आजकल बच्चों को किस तरह से पाला जाता है.. बच्चों पर ज्यादा बंदिश लगाओ तो वे हाथ से निकल जाते हैं, फिर अन्य मां-बाप भी तो अपनी लड़कियों को किसी भी बात पर मना नहीं करते.. तो सिर्फ हमारी रोक-टोक के कारण बेटी को उसके सारे दोस्त चिढ़ाते हैं… अगर ग्रुप में रहना है तो कई कुरीतियों को भी कुछ हद तक अपनाना ही पड़ता है.. और वैसे भी, हम लोग बच्ची को उसके सहेलियों के घर भेजने से पहले उनके माता-पिता से फोन पर बात भी तो कर लेते हैं ना……. !”
इसी प्रकार की न जाने कितनी बातें मनीषा के भैया-भाभी उसे सुनाते रहते थे.. मनीषा बस मन मसोस कर रह जाती थी.. फिर भी उसका का दिल नहीं मानता था.. कुछ दिन पहले तो हद ही हो गई थी.. भैय्या-भाभी दूसरे गाँव गए थे, किसी बीमार रिश्तेदार को देखने.. और मनीषा बुआ को बुलाया गया था बच्चियों पर नजर रखने के लिए और उनकी हिफ़ाज़त के लिए.. बच्चियां तो बहुत खुश थीं, विशेषतौर पर छोटी वाली, जिसकी उम्र केवल १३ साल ही थी.. उसके लिए तो जैसे मम्मा पापा का गाँव जाना एक उत्सव का वक्त था.. मम्मी-पापा घर पर नहीं हैं, तो दोस्तों के साथ कई सारे प्लान बन रहे थे.. परन्तु, बड़ी भतीजी खुश नहीं थी, क्योंकि अब वह “बड़ी” होने का “अर्थ” समझ चुकी थी..
छोटी का यूँ मम्मी-पापा की गैरमौजूदगी में घर के बाहर रहना उसे भाता न था.. दोनों में बुरी तरह से बहस चल रही थी.. “छोटी” ने अपनी बात मनवाने के लिए खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था.. तभी मनीषा बुआ वहां पहुंची थी, और बड़ी ने सारी हकीक़त उसे सुनाई थी, और हमेशा मनीषा को उसके मम्मी-पापा द्वारा सुनाये जाने वाले शब्दों को भी दोहराया था कि वह छोटी को ज्यादा देर तक रोक नही पाएगी.. पर इसके अलावा जो उसने मनीषा को बताया था, उससे मनीषा का दिल दहल गया.. कई मां-बाप अब अपनी बेटियों की सहेलियों के साथ-साथ उनके लड़के दोस्तों को भी अब एक साथ स्लीप-ओवर के लिए अनुमति देने लगे हैं…….
— वर्षा मुजुमदार
आज के युग की बिडंबनाओं को उजागर करती हुई अच्छी कहानी !
जी बहुत धन्यवाद आप का