लघुकथा : आत्मा
जितने सुख एक इन्सान की चाहत होते हैं लगभग वो सब मीना के घर पर थे। शादी के बाद भी उसके ससुराल में किसी बात की इतनी कमी नहीं थी। कमी थी तो बस थोड़ी सी आज़ादी की और ज़रूरत थी थोड़ी सी ज़िम्मेदारी समझने की। मीना के सास ससुर बहुत ही अच्छे थे। पर मीना को लैपटाप,मोबाईल,घूमना फिरना और अपने ममी पापा पसंद थे। सास ससुर से बस ओपचारिकता मात्र ही मिलती या बात करती थी। बहुत बार मीना के पति ने भी उसे समझाया था पर उसे बंदिश रोक टोक पसंद नहीं थी। किटी पार्टी जाना या सहेलियों के साथ शापिंग से ही फुर्सत नहीं मिलती थी।
मीना के सास ससुर को यह बात बहुत खलती थी पर उन्होने न मीना से न ही अपने बेटे से इसकी कोई शिकायत की थी। वो तो जैसे बस अपना समय व्यतीत कर रहे थे। उनकी आत्मा कभी कभी तरसती थी जिसे हम ब्याह कर लाए हैं वो कभी हमारे साथ सुख दुख की बात भी नहीं करती। कभी प्यार से पानी भी नहीं पूछा। उसने उन्हें अपना नहीं माना। मीना को किसी बात से या उनकी पसंद नापसंद से कोई सरोकार नहीं था।
कुछ समय बाद दिल का दौरा पड़ने से ससुर जी का देहान्त हो गया और सास भी इसी गम में कुछ दिन बाद चल बसी। मीना अब इतने बड़े घर में अकेली हो गई थी। उसके पति जब काम पर चले जाते तो उसे घर खाली खाली लगने लगता। घर में जैसे कोई रौनक नह रह गई थी।अब उसका घूमना भी वैसा नहीं रहा था क्योंकि अब वो बेफिक्र होकर घंटों बाहर नहीं रह पाती थी।
कभी कभी तो उसे अपने सास ससुर साक्षात दिखाई दे जाते थे। मीना को वो रह रहकर यही पूछते थे मीना तुमको हमने इतने लाड प्यार से ब्याह कर लिया था। कभी तुम हमारे पास नहीं बैठी कभी हमारा हाल नहीं पूछा। कभी प्यार से हमारी पसंद का खाना भी नहीं खिलाया। कभी कोई सुख दुख की बात भी नहीं पूछी । मीना ऐसा क्यों किया।
मीना अपनी गल्ती समझ चुकी थी। उसकी आत्मा भी उसे झंकोरती थी पर अब पछतावे के सिवा उसके पास कुछ नहीं था। कभी कभी कुछ बाते हमारी आत्मा को भी घायल कर देती हैं रूलाती हैं शायद इसीलिए मरने के बाद भी कुछ अफसोस और असन्तोष रह जाता है।।।
— कामनी गुप्ता
अच्छी लघुकथा!
अच्छी लघुकथा!
हौंसला बड़ाने के लिए बहुत धन्यवाद सर जी