25 शेरों से युक्त ग़ज़ल
वक्त के साथ ऐ जालिम, ज़माने छूट जाते हैं ।
मुहब्बत क्यों ख़ज़ानो से ख़ज़ाने छूट जाते हैं ।।
तजुर्बा है बहुत हर उम्र की उन दास्तानों में ।
तेरीे जद्दो जेहद में कुछ फ़साने छूट जाते हैं ।।
बहुत चुनचुन के रंजोगम को जो लिखता रहा अपना।
उन्हीं से इंतकामो में निशाने छूट जाते हैं ।।
रकीबों से मुशीबत का कहर बरपा हुआ तब से ।
हरम के घुंघरुओं से कुछ तराने छूट जाते हैं ।।
वो कुर्बानी है बेटी की जरा जज्बात से पूछो ।
नए घर को बसाने में घराने छूट जाते हैं ।।
गरीबों की खबर से है कमाई का कहाँ नाता ।
चैनलो पर कई आंसू दिखाने छूट जाते है ।।
चन्द साँसे बची हैं अब सबक के वास्ते तेरे ।
कायदे फर्ज के अक्सर बताने छूट जाते हैं ।।
मुखौटे ओढ़ के बैठे हुए जो ख़ास है दिखते ।
वही रिश्ते जो तुम् से आजमाने छूट जाते हैं ।।
यहां सावन नहीं बरसा वहां फागुन नहीं आया।
दाल रोटी में वो मौसम सुहाने छूट जाते हैं ।।
पेट की आग में झुलसे हुए इंसान से अक्सर।
जो मन के मीत थे सारे पुराने छूट जाते हैं ।।
मकाँ लाखो बना कर बेअदब सी सख्सियत जो हैं ।
इन्ही लोगों से अपने घर बनाने छूट जाते हैं ।।
परिंदों का भरोसा क्या कभी ठहरे नही हैं वो ।
बदलते ही नया मौसम ठिकाने छूट जाते हैं ।।
न औकातों से ऊपर उठ मुहब्बत जान लेवा है ।
बड़े लोगो से कुछ वादे निभाने छूट जाते हैं ।।
सियासत लाश पर करके रोटिया सेंक ली उसने ।
सियासत दां से अब मरहम लगाने छूट जाते है ।।
खुशामद कर अनाड़ी पा रहे सम्मान सत्ता से ।
ये हिन्दुस्तान है प्यारे सयाने छूट जाते हैं ।।
खुशबओ की तरह वे जो बिखर जाते फिजाओं में ।
ख़ास मेहमाँ मेरी महफ़िल बुलाने छूट जाते हैं ।।
मैंकदों में से न कर यारी इन्हें दौलत बहुत प्यारी ।
यहाँ तिश्ना लबों को मय पिलाने छूट जाते हैं ।।
अदालत में सुबूतो पर है लग जाती कोई बोली ।
यहाँ मुजरिम भी दौलत के बहाने छूट जाते हैं ।।
कातिलो के शहर में ढूढ़ ले अपनी वफादारी ।
मुहब्बत के बदौलत कत्ल खाने छूट जाते हैं ।।
बयां करके गया है खत तेरे राज ए हकीकत को ।
इश्क बाजी में तुझसे खत जलाने छूट जाते हैं ।।
कसम रंजिश में वो खाता रहा उसको मिटाने के ।
रूबरू चाँद से ख्वाहिश मिटाने छूट जाते हैं ।।
मिला है वह गले मेरे मगर खंजर छुपा करके ।
नफरतों के किले उनसे ढहाने छूट जाते हैं ।।
हवाला उम्र का देकर दरिंदे फिर बचे देखो ।
तुम्हारे शहर के ये शातिराने छूट जाते हैं ।।
वो चौराहो पे बैठी थी नकबो से अलग हटकर ।
मुकाम ए उम्र से फैशन दिखाने छूट जाते हैं ।।
ग़ज़ल की तिश्नगी है बेकरारी का सबब आलिम ।
हूर के बिन स्वरों में गुनगुनाने छूट जाते हैं ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी
(मित्रो ग़ज़ल कम से कम 3 शेर और अधिकतम 25 शेरो तक लिखी जाती है मैंने पहली बार इतनी बड़ी ग़ज़ल लिखी है )
प्रिय नवीन भाई जी, शानदार-जानदार गज़ल के लिए हमारी बधाई स्वीकारें.
शानदार ग़ज़ल ! आपका प्रयास प्रशंसनीय है.