कुण्डली/छंद

घनाक्षरी छंद

नयनों में प्यास लिए, मुख मृदु हास लिए चहकत झूम झूम जैसे हो कजरिया ।
मधुमाती अबला सी, रसवंती सबला सी ,चलती है चपला सी जैसे हो बिजुरिया ।
इठलाती इतराती, प्रेम सुधा बरसाती , बलखायी हिरणी सी लचके कमरिया ।
वासन्ती चुनर औ धानी परिधान सजे , ठुमक ठुमक चले अल्हड़ गुजरिया ।

— लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है

6 thoughts on “घनाक्षरी छंद

  • राजेश कुमारी

    बहुत अच्छी मनभावन घनाक्षरी आद० लता जी बहुत बहुत बधाई

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    लाजवाब

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा छंद !

  • बहुत बढिया .

  • बहुत बढिया .

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी लता जी, बहुत सुंदर

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