कविता

मुस्कुराने से फ़िज़ाएं मुस्कुराती हैं

मुस्कुराओ, कि मुस्कुराने से फ़िज़ाएं मुस्कुराती हैं,
गुनगुनाओ, कि गुनगुनाने से बहारें गुनगुनाती हैं,
मिला है जीवन जग में, कुछ अच्छा कर दिखाने को,
कुछ अच्छा करके जाएं, तो मन की गलियां मुस्कुराती हैं.

झिलमिलाओ, कि झिलमिलाने से सितारे झिलमिलाते हैं,
खिलखिलाओ, कि खिलखिलाने से नज़ारे खिलखिलाते हैं,
मिला है जीवन जग में, कुछ नया कर दिखाने को,
कुछ नया करके जाएं, तो मन की दरीचे झिलमिलाते हैं.

झूमो, कि झूमने से कलियां झूम जाती हैं,
गाओ, कि गाने से कोयलें साथ गाती हैं,
मिला है जीवन जग में, बस आनंद अनुभव करने को,
आनंद अनुभव करके ही जाएं, तो मन की खिड़कियां खनक जाती हैं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

4 thoughts on “मुस्कुराने से फ़िज़ाएं मुस्कुराती हैं

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत बढ़िया !

    • लीला तिवानी

      प्रिय विजय भाई जी, शुक्रिया.

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, सही है, मुस्कुराएं-गुनगुनाएं-खिलखिलाए, आनंद अनुभव करके ही जाएं.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    आनंद अनुभव करके ही जाएं, तो मन की खिड़कियां खनक जाती हैं. वाह ,किया बात है ,खुलने से खिडकिया ,खडकते हैं खडक सिंह .

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