ग़ज़ल
ये कायनात ताज़ा दम बस तेरे होने से है
तकदीर का मुझ पे करम बस तेरे होने से है
मैं जर्रा था तेरे इश्क ने छू के कर दिया आफताब
मेरी हस्ती का मुझे भरम बस तेरे होने से है
तुम से है वस्ल ए सुबह तुम से ही शाम ए फिराक
ये जीस्त के राहत सितम बस तेरे होने से है
तेरे संग-संग मुड़ती गई मेरी जिंदगी की रहगुज़र
ये रास्तों के पेच ओ ख़म बस तेरे होने से है
कभी धूप तो कभी चाँदनी कभी मीठी सी फुहार तू
मौसम की हर अदा सनम बस तेरे होने से है
तुमसे मुखातिब हैं मेरे अशआर सब ए हमनशीं
मेरी शायरी मेरी हर नज़म बस तेरे होने से है
तुमसे बिछड़ के एक पल भी जी नहीं पाऊँगा मैं
मेरी जिंदगी मेरे हमकदम बस तेरे होने से है
— भरत मल्होत्रा
अच्छी ग़ज़ल !