ग़ज़ल : कितनी बातें कहनी थीं
कितनी बातें कहनी थीं पर हम कितनी कह पाए.
हमसे पूछो-तुम बिन पल भर क्या तनहा रह पाए.
तुम जो हमारे ऊपर गुस्सा होते तो अच्छा था,
पर मुस्काकर कड़वी बातें तुम कैसे सह पाये.
हम जैसे थे वैसे ही हैं क्या थोड़ा भी बदले.
काश कभी अब मौजों के सँग साहिल भी बह पाए.
तुमने जब कुछ पूछा हमने बस चुप्पी ही साधी,
बोल न पाए झूठ न तुमसे सच ही हम कह पाए .
टूट गया दिल,हाथ हमारा फिर भी थामे रहना,
जो है इमारत ख्वाबों वाली वो न कभी ढह पाए.
भावपूर्ण प्रस्तुति
सुन्दर गजल!!