ग़ज़ल
आप कह दो मिरी खता क्या है ।
दरमियां अपने अब रखा क्या है ।
इश्क का रोग लग गया मुझको
दर्दे-दिल की मिरे दवा क्या है ।
भेजना चाहता हूँ खत उनको
मेरे महबूब का पता क्या है ।
मोल मत कीजिये मुहब्बत का
प्यार के सामने पैसा क्या है ।
जख्म पे जख्म दे रहा मुझको
मेरे अंदर उसे दिखा क्या है ।
ख्वाब में रात कट रही मेरी
तू बता दे मुझे हुआ क्या है ।
धर्म बेदर्द क्यों हुए इतने
मुझसे कह दो माजरा क्या है ।
— धर्म पाण्डेय
बेहतरीन ग़ज़ल !