जयहिंद !!
ज़िन्हे दीप जलाना था राष्ट्रीय मान का
फैलाने चले हैं अंधेरा तिरंगे की आन पर
शौक ए दस्तूर न समझाओ यूँ आन तोड़कर
मिटने वालो को आता है मिटाना भी मान पर — विजय लक्ष्मी
ज़िन्हे दीप जलाना था राष्ट्रीय मान का
फैलाने चले हैं अंधेरा तिरंगे की आन पर
शौक ए दस्तूर न समझाओ यूँ आन तोड़कर
मिटने वालो को आता है मिटाना भी मान पर — विजय लक्ष्मी
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बढ़िया मुक्तक !
धन्यवाद