क्षणिका

जयहिंद !!

ज़िन्हे दीप जलाना था राष्ट्रीय मान का
फैलाने चले हैं अंधेरा तिरंगे की आन पर
शौक ए दस्तूर न समझाओ यूँ आन तोड़कर
मिटने वालो को आता है मिटाना भी मान पर — विजय लक्ष्मी

विजय लक्ष्मी

विजयलक्ष्मी , हरिद्वार से , माँ गंगा के पावन तट पर रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हमे . कलम सबसे अच्छी दोस्त है , .

2 thoughts on “जयहिंद !!

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया मुक्तक !

    • विजय लक्ष्मी

      धन्यवाद

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