गीत : भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
कैंपस में लगते नारों पर
घर ही में छुपे गद्दारों पर
भाईयों के दिल में पलते जो
नफरत के उन अंगारों पर
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
बेमतलब की तकरारों पर
इन गालियों की बौछारों पर
जिन्हें दूध पिला कर पाला है
उन साँपों की फुफकारों पर
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
पीठ पे होते वारों पर
आस्तीनों की तलवारों पर
जो कौम, मजहब के नाम बहे
लहू के उन फव्वारों पर
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
आरक्षण की दीवारों पर
और पढ़े-लिखे बेकारों पर
जो सदियों पुरानी धरोहर थे
उन टूटते भाईचारों पर
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
मासूम की चीख-पुकारों पर
निर्दोषों के हत्यारों पर
रोज़ सुबह घर में आते
इन खून सने अखबारों पर
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
घाटी में लुटी बहारों पर
उदास, वीरान चिनारों पर
कश्मीरी पंडितों पर जो हुए
उन सारे अत्याचारों पर
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
कुछ भेड़ बने सियारों पर
इन सब लालच के मारों पर
जो खुद को नेता समझते हैं
उन दिमागी बीमारों पर
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
लाशों से भरे बाजारों पर
पद पर बैठे लाचारों पर
बेहोश पड़े प्रशासन पर
और सोई हुई सरकारों पर
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
— भरत मल्होत्रा
बहुत अच्छा गीत, भरत जी !
बहुत अच्छा गीत, भरत जी !
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं
लाशों से भरे बाजारों पर
पद पर बैठे लाचारों पर
बेहोश पड़े प्रशासन पर
और सोई हुई सरकारों पर
भारत माँ हम शर्मिंदा हैं, आप ने सही कहा है .