कविता

दिल तुम्हें संभाल लेगा

दिल को संभाल के रखो
दिल दिल है बिल नहीं
कि
चुकाया और फाड़ दिया
दिल फटता है
तो
कयामत आ जाती है
दिल टूटता है
तो
कयामत पर
कयामत आ जाती है
दिल धड़कता है धड़काता है
दिल फड़कता है फड़काता है
दिल बहकता है बहकाता है
दिल महकता है महकाता है
दिल चहकता है चहकाता है
दिल तरसता है तरसाता है
दिल हंसता है हंसाता है
दिल रोता है रुलाता है
दिल उठता है उठाता है
दिल गिरता है गिराता है
दिल मचलता है मचलाता है
दिल मानता है मनाता है
बनाना चाहे तो दिल
इंसान बनाता है
वरना हैवान बनाने में भी
संकोच नहीं दिखाता है
दिल प्रभु की इनायत है
इस पर कोई और राज करे
ऐसी किसमें हिमाकत है
दिल बंदगी है इबादत है
दिल से दिल को राहत है
यह दिल की ही हिदायत है
दिल बिना बोले
सब कुछ कह जाता है
दिल नैनों की भाषा
चुपके-से समझ जाता है
प्यार के संदर्भ में कहा जाता है
दिल की मत मानियो ये मार देगा
इंसानियत के संदर्भ में कहा जाता है
दिल की ही मानियो ये
सही राह दिखाकर तार देगा
सामाजिक व्यवहार के संदर्भ में कहा जाता है
दिल को मार के चलो तो
ज़माना सम्मान देगा
स्वास्थ्य के संदर्भ में कहा जाता है
दिल की मान के खाओगे तो
दिल दगा देगा
सोच-समझ के खाओगे तो
दिल ही साथ देगा
तुम दिल को संभालो
दिल तुम्हें संभाल लेगा,
दिल तुम्हें संभाल लेगा,
दिल तुम्हें संभाल लेगा.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

10 thoughts on “दिल तुम्हें संभाल लेगा

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता बहिन जी!

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता बहिन जी!

    • लीला तिवानी

      प्रिय विजय भाई जी, बहुत-बहुत शुक्रिया.

  • अरुण निषाद

    मनमोहक भाव

    • लीला तिवानी

      प्रिय अरुण भाई जी, आपके मनमोहक भावों की झलक है. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.

  • लीला तिवानी

    प्रिय मनमोहन भाई जी, आपके लेख जितने उद्बोधक होते हैं, उतनी ही उद्बोधक बहुत यत्न से लिखी हुई आपकी प्रतिक्रियाएं होती हैं. लगातार ऐसे लेख व प्रतिक्रियाएं लिखते-पढ़ते रहने से मन में स्वत: ही सकारात्मकता आ जाती है. ऐसे ही ज्ञान-बरखा करते रहने के लिए बहुत-बहुत आभार.

  • मनमोहन कुमार आर्य

    नमस्ते बहिन जी। कविता बहुत अच्छी लगी। दर्शनों का एक सूत्र याद आ गया. सूत्र है “मन एव मनुष्याणाम् कारणं बन्ध मोक्षयो” अर्थात मनुष्य का मन ही बंधन और मोक्ष का कारण है. इसका अर्थ यह भी है मनुष्य को सुख व दुःख मन के ही कारण होता है। हार्दिक धन्यवाद।

    • लीला तिवानी

      सूत्रों के सरताज प्रिय मनमोहन भाई जी, आपने जीवन की जीवंतता के लिए अर्थ सहित बहुत सुंदर सूत्र “मन एव मनुष्याणाम् कारणं बन्ध मोक्षयो” लिख भेजा है. शुक्रिया.

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, हमें भी आपकी प्रतिक्रिया निहायत अच्छी और प्रोत्साहजनक लगी. शुक्रिया.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन , दिल पर लिखी यह कविता नहाएत ही अच्छी लगी ,समझने में भी हर लाइन समझ आ गई ,really really wonderful poem,

    तुम दिल को संभालो

    दिल तुम्हें संभाल लेगा, किया शब्द हैं ,बहुत खूब .

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