स्नेहिल आभास
बचपन से ही हमें अपने घर में सात्विक व आध्यात्मिक माहौल मिला. सुबह-सवेरे पिताजी की मनमोहक वाणी में गाए हुए भजन हमारे जगने के लिए अलॉर्म का काम करते थे. उसके बाद पिताजी द्वारा सुरीली धुन में गीता-पाठ और रामायण-पाठ सुनकर वे मानो हमारे जीवन का हिस्सा बन गए. घर में एकमात्र पत्रिका आती थी ‘कल्याण’ जिसके कल्याणकारी लेख हमारा पथ-प्रदर्शन करते थे. मैं और पिताजी ‘कल्याण’ का नियम से अध्ययन करते थे और ‘कल्याण’ के वार्षिक अंक की बेसब्री से प्रतीक्षा करते थे. ‘कल्याण’ के वार्षिक अंक के रूप में मैंने बचपन से ही सारे वेद-पुराण पढ़ लिए थे, उनसे कितना कुछ सीख पाई, यह अलग बात है, लेकिन परमात्मा पर विश्वास और सकारात्मकता मेरे जीवन का हिस्सा बन गए. विश्वास कैसे न हो! आज की ही बात सुन लीजिए- सुबह सैर पर पता नहीं क्यों मन में आया, कि आज रविवार होने के कारण नाश्ते में ब्रैड से कुछ अलग खाया जाए, घर आई तो बहू नाश्ते के लिए पोहे बना रही थी, जो बहुत स्वादिष्ट बने थे.
प्रभु की लीला अपरम्पार है. वे सब पर हर पल स्नेह-प्रेम की बौछार करते रहते हैं, विश्वास करने वालों के तन-मन इसमें पूरी तरह से भीग जाते हैं और शीतलता प्रदान करते हैं. बात तब की है, जब हमारे बच्चे छोटे-छोटे हुआ करते थे. एक दिन दोपहर से ही मुझे ज्वर चढ़ आया था. किसी तरह बच्चों को लंच दिया, फिर शाम को दूध दिया. दोनों बच्चे मेरे बार-बार मेरे सिर को सहला रहे थे. बच्चों की उस सहलाहट में मुझे प्रभु की छुअन का आभास हो रहा था. मुझे बस एक ही विचार आ रहा था, कि पतिदेव के ऑफिस से आने के पहले रात का खाना बनाकर सहज हो सकूं. मैंने मन-ही-मन ओम का जाप शुरु किया और मुझे थोड़ी देर गहरी नींद आ गई. जैसे ही जाग हुई, मुझे लगा कि मैं बिलकुल ठीक हूं. उठने की शक्ति महसूस करते ही उठी, डिनर बनाया, टेबिल पर लगाया, इतने में पतिदेव आ गए. सबने बड़े प्यार से डिनर खाया. उसके बाद हमारे बेटे ने बड़ी मासूमियत से कहा- ”पापा, आज ममी को बहुत तेज़ बुखार था.” पतिदेव ने मेरी नब्ज़ देखी, बिलकुल ठीक थी. थर्मामीटर भी ठीक बोल रहा था. बुखार था ही कहां? बस प्रभु-ही-प्रभु थे और था उनका स्नेहिल आभास.
बहुत सुंदर संस्मरण, बहिन जी !
बहुत सुंदर संस्मरण, बहिन जी !
प्रिय विजय भाई जी, प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया.
लीला बहन , आप की यादों के दरीचे में झाँक कर देखा ,बहुत सुन्दर अनुभव है .
प्रिय गुरमैल भाई जी, आपकी ”यादों के दरीचे” का प्रताप है. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.
सुन्दर
प्रिय अरुण भाई जी, सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.
नमस्ते एवं धन्यवाद बहिन जी। आपने कुछ पंक्तियों में गागर में सागर भरा है। मेरे भी अनुभव आपसे मिलते जुलते हैं। मैं कल्याण का अनेक वर्षों से सदस्य हूँ। मेरे पिता भी सन १९५२ व आस पास कल्याण मासिक के सदस्य थे। बचपन में मैं इन्हे व इनके चित्रों को देखकर कर विस्मित होता था। इसमें दो राय नहीं कि ओम और गायत्री मंत्र का जप ओषधियों की भी महौषधि है। ओम व गायत्रीमंत्र का उच्चारण एवं जप करने से हमारी आत्मा का सम्बन्ध सीधा ईश्वर से जुड़ जाता है और इच्छा पूरी होने के साथ समस्या का निवारण होता है। सादर।
प्रिय मनमोहन भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. हमारे यहां हर तरह के मंत्र होते हैं, हमने हर मंत्र का जादू अनुभव किया हुआ है. लाजवाब प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.