लेख : जेएनयू प्रकरण एवं आरक्षण का उग्रवाद
पिछले दिनों दिल्ली के जेएनयू प्रकरण ने जहाँ देश की अखंडता को चुनौती दी है तो वहीँ दुसरी ओर हरियाणा के जाट समुदाय द्वारा आरक्षण की मांग को लेकर हिंसक आन्दोलन हुआ है l ये दोनों ही घटनायें भारत के हर जिम्मेदार नागरिक को सोचने पर विवश करती हैं l इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि राजनीति भी कहीं न कहीं इन घटनाओं के इर्द – गिर्द घुमती नज़र आती है l अभिव्यक्ति की आज़ादी का यह अर्थ कदापि नहीं निकाला जाना चाहिए कि किसी को भी कुछ भी करने या बोलने की आज़ादी है l संविधान के अनुच्छेद 19(2) में ही अभिव्यक्ति की आज़ादी की सीमाओं को भी बर्णित किया गया है l
जेएनयू में संसद हमले के दोषी और देश के सर्वोच्च न्यायालय से फांसी की सजा पा चुके अफजल गुरु को क्रांतिकारी और शहीद का दर्जा देकर देश के टुकड़े – 2 करने के नारे लगाये जाना, शिक्षा के इन मंदिरों को कटघरे में लाकर खड़ा कर देता हैं l इस तरह के शैक्षणिक संस्थान हमारी युवा पीढ़ी में कौन सी तथाकथित अभिव्यक्ति और अलगवाद के बीज अंकुरित कर रहे हैं ? दूसरी ओर हरियाणा में अपनी बात को मनवाने के लिए देश की करोड़ों रुपये की सम्पति को तहस – नहस कर दिया जाता है l राजमार्गों और ट्रेन की पटरी को रोककर यातायात को अवरूध किया जाता है और मंत्रियों के घरों पर भी आगजनी और हमले की बारदातें होती हैं l इस हिंसक आन्दोलन में अब तक 10 लोगों की जान भी चली गई हैं जबकि कई लोग घायल भी हुए हैं l
तेजी से बदल रहे वैश्विक परिदृश्यों के सन्दर्भ में हमें गंभीरता से सोचना होगा कि हम किस ओर जा रहे हैं l क्या आरक्षण प्राप्ति का यह उग्रवाद, स्वाभिमानहीन और पंगु पीढ़ी तैयार कर देने की राह नहीं है ? गरीबी और अभाव कभी भी किसी व्यक्ति विशेष की जाति देखकर नहीं आते तो फिर महज जाति के आधार पर आरक्षण की मांग करना सिरे से ही गलत है l आर्थिक आरक्षण ही जातिगत आरक्षण के इस उग्रवाद पर लगाम लगा सकता है, जिससे सभी जातियों के जरूरतमंद लोगों को समानता और एकता के सूत्र में पिरोने की संभावना परिलक्षित होती है l
-मनोज चौहान
बहुत अच्छा लेख !
हौसला अफजाई के लिए आभार सर …..!