कविता

महासंकट से रक्षा

क्रोध भयंकर, बहरा, गूंगा और विकलांग होता है,
यह है मानो यमराज, एक प्रकार का क्षणिक पागलपन होता है,
बुद्धि वहां से खिसक जाती है, जैसे ही क्रोध ग्रहण करता है सिंहासन,
क्रोध मूर्खता से प्रारम्भ और पश्चाताप पर खत्म होता है.

क्रोध को जीतने में सबसे अधिक सहायक होता है कौन?
जी हां, इसका बस एक ही उत्तर है, नाम है मौन, मौन, मौन,
अगर क्रोध आने पर चुप्पी साध ली जाए तो,
तो सामने वाला अपने आपको बरबस समझेगा गौण.

मूर्ख मनुष्य क्रोध को ज़ोर-शोर से प्रकट करता है,
किंतु बुद्धिमान उसे शांति से वश में करता है,
क्रोध यानी दूसरों की गलतियों की सजा स्वयं को देना,
समझदार व्यक्ति बुद्धिमानी से इस भयंकर क्रांति से बचता है.

क्रोध से धनी व्यक्ति घृणा और निर्धन तिरस्कार का पात्र होता है,
क्रोध में विचार न करने वाला अंत में परिणाम पर रोता है,
मन की पीड़ा को व्यक्त न कर सकने वाले को क्रोध अधिक आता है,
क्रोध मस्तिष्क के दीपक को बुझा देता है, भयंकर अंधकार होता है.

अतः हमें सदैव शांत व स्थिरचित्त रहना चाहिए,
क्रोध में हो तो बोलने से पहले दस तक गिनना चाहिए,
अगर ज़्यादा क्रोध में हों तो सौ तक गिनें,
तब तक क्रोध को रफू चक्कर हो जाना चाहिए.

क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है,
मूढ़ता से स्मृति भ्रांत होती है,
स्मृति भ्रांत हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है,
बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी की स्वतः दुर्गति होती है.

सुबह से शाम तक काम करके आदमी उतना नहीं थकता है,
जितना क्रोध या चिन्ता से पल भर में वह थकता है
जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध न कर उसे क्षमा है प्रदान करता,
वह अपनी और क्रोध करने वाले की महासंकट से रक्षा करता है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

8 thoughts on “महासंकट से रक्षा

  • Man Mohan Kumar Arya

    क्रोध की जैसी सुन्दर, सारगर्भित तथा प्रभावशाली व्याख्या आपने की है वह लाभकारी एवं सराहनीय है। इस कविता में गीता व योगदर्शन का ज्ञान भी सम्मिलित है। क्रोधी मनुष्य शीघ्र नष्ट हो जाता है। शायद क्रोध को विवेक से ही जीता जा सकता है। धन्यवाद आदरणीय बहिन। जी

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. गीता के दूसरे अध्याय के अंत में ”क्रोधाद्भवति सम्मोहः—-” हमारे मन में बसा हुआ है, जब जीवन में अमल कर पाएं, तब बात बने. योग दर्शन भी यही कहता है. आपके लेख पढ़कर और आपसे संवाद करके हमें सत्संग का आनंद मिल रहा है. सार्थक प्रतिक्रिया करने के लिए शुक्रिया.

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    सुंदर सृजन के लिए आभार बहन जी

    • लीला तिवानी

      प्रिय राजकिशोर भाई जी, प्रोत्साहन के लिए आपका भी आभार.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन, करोध चंडाल ही होता है और इस के परीणाम भयंकर हो सकते है .कुछ लोग दुनीआं में ऐसे हैं कि पहले गुस्से में आ कर किसी का नुक्सान कर देते हैं और फिर जेल के चक्कर लगाते और अपना धन बर्बाद करते रहते हैं .बहुत अच्छी रचना .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. सार्थक प्रतिक्रिया करने के लिए शुक्रिया.

  • लीला तिवानी

    प्रिय विजय भाई जी, शुक्रिया.

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख बहिन जी !

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