गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : तुम बिन गुलशन खाली है

तुम बिन सब मुस्कानें झूठी साज-सिंगार ये जाली है.
तुम से ही सब हरियाली है तुम बिन गुलशन खाली है.

रोज़ नए कितने ही चेहरे इस दिल को न्यौता देते,
लेकिन मैं भँवरों  से पूछूँ तुमसा कोई माली है ?

नगरी-नगरी जाकर गाऊँ मैं तेरे ही गीतों को,
दाद सभी दें पर कानों में गूँजे तेरी ताली है.

सुर्ख नज़ारे, शोख इशारे हर रँग ही चमकीला है,
दिल के कोने-कोने में पर फैली तेरी लाली है.

दर्द न जाने क्यों ज्यादा ही आज आमादा डसने को,
शाम न जाने क्योंकर लगती रात से ज्यादा काली है.

*अर्चना पांडा

कैलिफ़ोर्निया अमेरिका

3 thoughts on “ग़ज़ल : तुम बिन गुलशन खाली है

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल !

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    बहुत बढ़िया

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