कुण्डली/छंद

पंच चामर छ्न्द ==नमामि वंदना गुरु

नमामि वंदना गुरु—

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पंच चामर छ्न्द
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मापनी =१२ १२ १२ १२ – १२ १२ १२ १२
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नमामि वंदना गुरु अशेष जन्म साधना
सरस्वती करें कृपा अजेय भाव साधना
प्रकल्प कल्पना सजे रसाल गीत गीतिका
भजामि शारदा सदा प्रभा अमोघ गीतिका /
विदेह देह ज्ञान से, अशोक शोक को हरे/
गुरू अगाध नेंह से, अज्ञान ज्ञान से भरे /
सुधा नदी बहे सदा, हिए खुशी भरे जमी
प्रभा सदेह भारती विशेष आश् मे जमी/
निशा मिटा प्रभा करे , गुरू महेश आरती /
सदा जमी खुशी भरें दिनेश भाव भारती /

प्रसून सा खिले धरा खुशी दिवा विभावरी
समीर चाँद चाँदनी सखे दिखे विभावरी /
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राजकिशोर मिश्र ‘राज’
२४/०२/ २०१६
सर्वाधिकार सुरक्षित

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि