लघुकथा

परवरिश का प्रभाव

जाने कैसे बहुत समय पहले पढ़ा-सुना चुटकुला याद आ गया. एक दम्पत्ति के तीन बेटियां थीं. दुर्भाग्यवश तीनों तोतली थीं. तोतली इस मायने में कि बाकी सब वर्ण-अक्षर तो वे सही बोलती थीं केवल, ‘क’ का उच्चारण ‘त’ करती थीं. बचपन में ‘पकोड़े’ को ‘पतोड़ा’ कहतीं तो अभिभावक खुश होते. बाद में तो उनकी यह आदत सुधर नहीं पाई. अब तो समाज में हंसी का पात्र बनने को तो उन्होंने अपनी नियति मान ही लिया था लेकिन, समय के गतिचक्र के बराबर चलते रहने के कारण वे विवाह योग्य हो गईं. तोतलेपन के चलते तीनों के विवाह में रुकावट आ रही थी. एक बार उनमें से किसी का भी विवाह करने की बात सोचकर किसी दूसरे शहर के युवक को उन्हें देखने के लिए आमंत्रित किया गया. तीनों को बिलकुल चुप रहने के कड़े निर्देश दिए गए. नियत समय पर लड़के वाले आ गए. सब आमने-सामने बैठ गए. इतने में फ़र्श पर एक मकोड़ा दिखाई दिया. एक बेटी से चुप न रहा गया और बोली ‘मतोड़ा’, दूसरी कहां चुप रहने वाली थी! वह बोली, ‘पतड़ ले’. तीसरी किससे कम थी! वह बोली. ‘मैं तो बोली ही तोई नहीं’. तीनों के तोतलेपन का राज़ खुलते ही स्वभावतः लड़के वालों को तो उल्टे पांव बैरंग भागना ही था.

इस चुटकुले ने मन में हलचल मचा दी. नन्हे-से शिशुओं के छोटे-छोटे कोमल हाथों-पावों से लेकर तुतलाहट से बोलने तक की उनकी हर अदा बहुत प्यारी लगती है. हम उन्हें भगवान का छोटा रूप समझकर उन्हें बड़े लाड़-दुलार से पालते-पोसते हैं. कभी-कभी हम अनजाने में ही उनकी तुतलाहट से मन-ही-मन आनंदित होते हैं और सुधार का प्रयत्न करने के बजाए उनको और बार-बार वह शब्द बोलने की शह देते हैं. अधिकतर बच्चों को तो कोई-न-कोई टोक-टाककर सुधार ही लेता है लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ बच्चों में चाहकर भी सुधार नहीं किया जा सकता क्योंकि जब तब हमारी आंख खुले, उनकी आदत पक्की हो चुकी होती है और फिर उन्हें हंसी का पात्र बनने के साथ-साथ व्यवसाय व विवाह में परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है. इसलिए समय रहते ही बच्चों को तुतलाहट से मुक्ति दिलाकर बच्चों की सही परवरिश का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

5 thoughts on “परवरिश का प्रभाव

  • Man Mohan Kumar Arya

    बहुत अच्छी कहानी। बचपन की तोतली भाषा सभी को अच्छी लगती है। यदि माता पिता पचपन से ही इस पर ध्यान दे तो इस समस्या पर पार पाया जा सकता है। पाठशाला में शिक्षकों का काम है कि बच्चे के उच्चारण पर विशेष ध्यान दे। प्रभावशाली रूप में शुद्ध उच्चारण एक कला है जो सभी को प्रभावित करती है। स, ष, श व क्ष के शुद्ध उच्चारण पर माता पिता व अध्यापकों को विशेष ध्यान देना चाहिय। कहानी शिक्षाप्रद है. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन जी।

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, प्रोत्साहक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, हम भी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से पूर्णतः सहमत हैं. हार्दिक आभार.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन, चुटकला पड़ कर हंसी आ गई लेकिन एक बात से मैं भी सहमत हूँ कि बच्चों को सही समय पर सुधार लेना चाहिए .मुझे फिर वोह कालज के दिन याद आ गए जब एक दोस्त र को ग बोलता था और मैंने उस की मिमक्री कर दी थी .जरुर उस की बचपन की आदत गई नहीं होगी . लेख अच्छा लगा .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, हम भी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से पूर्णतः सहमत हैं. हार्दिक आभार.

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