लघुकथा

ढाल

“गाड़ी जरा तेज भागाओं | आज फिर पीछे लग गया नासपीटा | ” घबरा कर नीलम बोली
“इस छुटभैये सड़कछाप नेता की शिकायत कर आफ़त मोल ले ली | हर वक्त गिद्ध नजर लगाये बैठा रहता | अपनी बिटिया की रक्षा करूँ तो कैसे करूँ अब |”
“अच्छा तो किया जी आज छींटाकशी कर रहा था कल को न जाने क्या करता , कोई गलती न की हमने |”
“थाने की ओर भागाओं गाड़ी अब तो उन्हीं का सहारा हैं |”
“हा सही कह रहीं हो |”
तभी मिनिस्टर साहब के घर के बहार पहरेदारी करते ड्यूटी से थके पुलिस कर्मियो को देखते ही राकेश चहका अरे देखो मंत्रीजी के घर के बाहर गेट पर मुस्तैद वर्दीधारी, उन्हीं के पास चलते हैं |”
“अरे नहीं, नहीं ये वर्दीधारी, ये सब तो निहत्थे हैं क्या कर लेंगे,ऊपर से नेता की चौकीदारी में हैं एक नेता से ही कैसे रक्षा करेंगे बिटिया की | आगे ही थाना वहां चलो |”
“तुम नहीं समझती बस ये वर्दी ही काफ़ी हैं अपनी ढाल बनने के लिए | अभी इतना भी जंगल राज नहीं आया नीलू |”

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|