मुक्तक/दोहा

मुक्तक- संतुलन

संतुलन========

मापनी —२१२ २ २१२२ २१२२ २१२
जिंदगी का संतुलन बे -जान पत्थर कह रहे /
पाट मत सागर भवन बन- शान पत्थर कह रहे/
लोक हो बेहाल हलाहल सिंधु पादप जग धरा/
जान दुनियाँ की बचा ले – ज्ञान पत्थर कह रहे/

राजकिशोर मिश्र ‘राज’
सर्वाधिकार सुरक्षित
२४/०२/२०१६

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

2 thoughts on “मुक्तक- संतुलन

  • लीला तिवानी

    प्रिय राजकिशोर भाई जी,

    गीत गाया पत्थरों ने,

    सुन लिया आपके मन ने,

    बधाई हो आपको हमें भी उनका संदेश सुनाया,

    बहुत बढ़िया संदेश सुनाया पत्थरों ने.

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीया बहन जी आपकी आत्मीय स्नेहिल हौसला अफजाई के लिए तहेदिल से आभार नमन्

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