लिफ़्ट का संदेशा
लिफ़्ट हमें लिफ़्ट देती है
साथ ही देती है एक संदेशा
कि,
”भला” करने में अपना भी ”लाभ” छिपा होता है
क्योंकि,
”भला” शब्द का उल्टा शब्द ”लाभ” ही होता है
सबके भले में अपना भला भी छिपा होता है
हां,
एक बात का ध्यान रखना
मुझे आदेश देते समय अवश्य चेक कर लेना
आदेश सही दिया है कि नहीं
और मेरे स्विच को दबाना, मगर प्यार से
आखिर मैं आपकी हमदम हूं, दोस्त हूं, सेविका हूं
मालिक ने आपको जो लियाकत दी है
उसका सदुपयोग करो हमेशा.
लिफ़्ट हमें लिफ़्ट देती है
साथ ही देती है एक संदेशा
कि,
मैं मानती हूं आपका हर आदेश चुपचाप
ऊपर बुलाते हो तो, ऊपर आ जाती हूं
नीचे बुलाते हो तो, नीचे आ जाती हूं
ऊपर चलने को कहते हो तो, ऊपर चल पड़ती हूं
नीचे चलने को कहते हो तो, नीचे चल पड़ती हूं
इसी तरह आप भी
मालिक की रज़ा में राज़ी रहो
दुःख-सुख को समझो एक समान
यही तो है सच्चा और निर्मल ज्ञान
जो मालिक ने दिया है, उसी में खुश रहो
हर समय मुख से शुकराने-शुकराने कहो
यही करती हूं मैं भी हमेशा.
लिफ़्ट हमें लिफ़्ट देती है
साथ ही देती है एक संदेशा
कि,
आपके आने से पहले मुझ में
कूड़ेदान वाला कूड़ेदान ले गया हो तो
कूड़े की दुर्गंध ही आपको सताएगी
इत्र-फुलेल लगाए कोई व्यक्ति गया हो तो
इत्र फुलेल की सुगंध ही आपको आएगी
इसलिए हमेशा अच्छी और मधुर वाणी ही बोलो
क्या पता वह वाणी ही आपके अंतिम शब्द बन जाएं
आपके अंतिम शब्द ही आपकी पहचान बन जाएंगे
बाकी सब अच्छे काम और वचन भुला दिए जाएंगे
इसका ध्यान रखो हमेशा
यही है मेरा यानी लिफ़्ट का संदेशा.
https://jayvijay.co/2016/01/21/%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%9F/
जो मैंने 21/01/2016 को पोस्ट की थी।
प्रिय सखी नीतू जी, मेल से पोस्ट करके हमें भी कविता पढ़वाइए. आभार.
बहुत खूब……आपकी इस कविता ने मुझे अपनी ही कहानी ‘लिफ्ट’ याद दिला दी।
प्रिय सखी नीतू जी, अच्छी बात है, कि आपको कविता पसंद भी आई और इसने आपको आपको अपनी कविता की याद भी दिलाई. आभार.
बहुत खूब बहिन जी! लिफ़्ट जैसी वस्तु से भी हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।
प्रिय विजय भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया.
आपकी कविता को पढ़कर ह्रदय से “धन्य धन्य”की ध्वनि आ रही है। बहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता। आपने इस कविता में ज्ञान एवं अध्यात्म को ऐसा पिरोया है कि ऐसा लग रहा है कि अध्यात्म पर यह एक श्रेष्ठ कविता है। मैं इस योग्य नहीं जो इस कविता को पढ़कर अपनी अनुभूतियों को शब्द दे सकूँ। यह तो गूंगे के गुड की तरह स्वादिष्ट एवं आनंददायक है। बहुत बहुत धन्यवाद। इसे पढ़कर शहीद पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जी की यह पंक्तिया भी याद आई। “मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे, बाकी न मैं रहूँ न मेरी कोई आरजू रहे। जब तक कि तन में प्राण और शरीर में लहू बहे, तेरा ही जिक्र और तेरी ही जुस्तजू रहे।” सादर।
प्रिय मनमोहन भाई जी, आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया पर कुछ कहते नहीं बनता. इतनी संपूर्ण प्रतिक्रिया लिखना भी एक महान कला है. आपकी आध्यात्मिक दृष्टि को हर रंग में आध्यात्मिकता दृष्टिगोचर होती है, यह भी एक सीखने वाली बात है. यह कविता कई दिनों के अनुभव व मंथन के उपरांत सृजित है. अत्यंत अनुपम प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.
लीला बहन , लिफ्ट में छिपे सन्देश को जान कर पर्सनता हुई , और कविता में लिखे अनमोल बचन तो सोने पे सुहागा हो गए .
प्रिय गुरमैल भाई जी, आपका प्रोत्साहन हमारे लिए आशीर्वाद है. शुक्रिया.