कविता

खतागार

मैं तेरी मोहब्बत के काबिल नहीं
ये खता है मेरी मैं खतागार हूँ
जो चाहे तू मुझको सजा आज दे
गर है मुझपे यकीन तो ये जान ले
बेवफा मैं नहीं तू है चाहत मेरी
जमाने की धूप में तू है राहत मेरी
जानती हूँ मैं ये कि तू मेरा नहीं
दूरी कितनी ही हो तेरे मेरे दरम्या
मोहब्बत मेरी तुझसे कभी कम ना होगी
जब जरूरत हो मेरी पलटकर देखना
तेरे साये की जगह मैं रहून्गी।
जब लगे तू है अकेला राहो में
एक आवाज देना मुझे प्यार से
पाओगे उस पल मुझे बाहो में ।

अनुपमा दीक्षित मयंक

अनुपमा दीक्षित भारद्वाज

नाम - अनुपमा दीक्षित भारद्वाज पिता - जय प्रकाश दीक्षित पता - एल.आइ.जी. ७२७ सेक्टर डी कालिन्दी बिहार जिला - आगरा उ.प्र. पिन - २८२००६ जन्म तिथि - ०९/०४/१९९२ मो.- ७५३५०९४११९ सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन छन्दयुक्त एवं छन्दबद्ध रचनाएं देश विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रो एवं पत्रिकाओ मे रचनाएं प्रकाशित। शिक्षा - परास्नातक ( बीज विग्यान एवं प्रोद्योगिकी ) बी. एड ईमेल - [email protected]

One thought on “खतागार

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कविता !

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