गलीज राजनीति
जो वाक्या प्रत्यक्षतः दृष्टिगोचर हो रहा हो, साफ _ साफ सुनाई दे रहा हो, मसलन कैसे जेएनयू के कुछ उन्मादी छात्र-छात्रा सरेआम भारत विरोधी नारे बुलंद कर रहे थे आतंकी अफजल को शहीद घोषित कर रहे थे आदिआदि, ऎसे में उन्हें किसी साजिश का शिकार मानने वाले राहुल गांधी, सीताराम येचूरी और अरविन्द केजरीवाल के लिए देशप्रेम से ज्यादा क्षुद्र राजनीति करना मायने रखता है तभी तो वें इस घटना को लीपा पोती कर अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रा का रूप देकर छात्रो के साथ नाइंसाफी होने का दावा कर रहे है, जो किसी भी देश के नागरिको के लिए असहनीय है. कमोबेश सियाचिन पठानकोट..कारगिल.आदि. जिसकी फेहरिस्त कभी खत्म नहीं होगी के जवानो के सहर्ष बलिदान का यही बदला चुका रहे ये स्वार्थी नेता जिनके लिए सिर्फ वोट बैंक ही मायने रखता है, वे यह समझ ले हम भारतीय है और अपने भारत माँ के खिलाफ चूँ तक नहीं सुन सकते व ऎसे गद्दार नेताओ को अर्श से फर्श में पटकने का भी माद्दा रखते है,अस्तु जेएनयू के देशद्रोहियो को किसी हाल में नहीं बक्शा जाये क्योकि देश के विरोध में नारे बुलंद करना अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रा नहीं अभिव्यक्ति का स्खलन है।
कुछ समय पूर्व तक आरोप -प्रत्यारोप की राजनीति ही चलन में थी, किन्तु जेएनयू में हुए राष्ट्र विरोधी नारों को नजरअंदाज कर विपक्षी दल जो पैंतरेबाजी कर रहे है या वहाँ के दोषी छात्रो के पक्ष में जो दलीलें दे रहे है वह क्षोभ उत्पन्न करता हर एक देशभक्त के भीतर आखिर ये राजनितिक अपना उल्लू साधने के लिए सम्प्रति देश हित को भी ताख पर रख रहे है, क्या उन्हें शर्म नहीं आती की एक ओर हमारे जवान देशप्रेम में हँसते हँसते अपनी अहुति दे रहे और एक ओर ये रहनुमा सिर्फ सत्तापक्ष को नीचा दिखने के लिए देशद्रोहियो को बचाने पर आमादा है, छी लानत है ऐसी गलीज राजनीति जिसमे देश का हित कोई मायने नहीं रखता, कमोबेश इस मुद्दे पर बुद्धिजीवी लेखकगण भी सहिष्णु बने हुए है।
— कजरी मानसी ऐश्वर्यम, गुडगाँव
बहुत सही टिप्पणी !