नरेन्द्र मोदी बनाम मनमोहन सिंह
चुनाव से पहले ‘मेरा गुजरात’ ‘मेरा गुजरात’ ‘मेरा गुजरात’ कहकर हर रैली को संबोधित करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी आज-कल शांत है। देश में हो रही घटनाओं पर मोदी जी का जरा भी ध्यान नही है, जाट आरक्षण में हो रही तबाही, पंपोर आतंकी हमला, देश की बडी यूनिवर्सिटी जेएनयू में विवादित ब्यानबाज़ी, इससे अलग जज ले पहले जज बने वकिलो का कन्हैया पर हमला और कोर्ट में गालियां इत्यादी पर मोदी जी को कोई ध्यान नही है, ध्यान है तो सिर्फ अपनी पार्टी का। अटल बीहारी वाजपेई हमेशा अपनी पार्टी से पहले देश की बात किया करते थे जो नरेनद्र मोदी में दिखाइ नहीं पडती। मोदी में दिखाइ पडती है तो भाजपा, दिखाइ पडता है तो मेक इन इंडिया, दिखाइ पडता है तो विदेश दौरा। रटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक मनमोहन सिंह ने 10 साल में की 73 विदेश यात्राओं पर 676 करोड़ रुपए से भी अधिक खर्च हुआ वही अगर बतौर प्रधानमंत्री अब तक मोदीजी की बात की जाए तो वो लगभग 2 साल के कार्यकाल में 28 देशों के दौरे पर जा चुके है। सोचता हु तो लगता है कि दोनो प्रधानमंत्रियो में कोई खास अंतर नही है। अंतर है तो सिर्फ इतना कि मनमोहन सिंह पर सोनिया जी का दबाव था यहा किसका है से भी पता नही। मनमोहन सिंह को बोलने नही दिया जाता था, और यहा बोलना नहीं चहाते।
जब देश जाट आरक्षण की आग में जूझ रहा था तब मोदी जी नेपाल से हाथ मिला कर समझोते कर रहे थे। वो काम जरुरी हो सकता है लेकिन ये सोचिए अगर ऐसे ही भीड़ देश की पराइवेट परोपर्टी को नुकसान करती रही तो इस देश में कौन सा कंपनी आएगी। क्या मतलब रह जाएगा विदोश दौरों का, क्या मतलब रह जाएगा मेक इन इंडिया का, क्या मतलब रह जाएगा आपके गुजरात का, क्या मतलब रह जाएगा आपको दिए पूर्ण बहुमत का। अब तो आपकी आलोचना करने वालो पर आपके कार्यकर्ता हाथ भी उठाने लगते है। सोच कर दंग रह जाता हु कि एक मझे हुए नेता ऐसा गलतिया कर सकता है। पूरा देश आपके खिलाफ है और आप बिना कुछ बोले ऐसे काम कर रहे है जैसे आपको कुछ ना पता हो। आपके नेता खुले आम गोली मारने की बात करते है और आप शांत रहते है, देश आरक्षण की आग में झुलस रहा है और आप शांत है, देश में आतंकी हमले हो रहे है तब भी आप शांत है। सोचिए मनमोहन सिंह को हटा के आपको इसलिए लाया गया था, कि आप भी शांत रहे।
— मनोज सिंह
आपके लेख की अधिकांश बातों से मैं सहमत नहीं हूँ। आपने यह नहीं बताया कि मोदी जी की विदेशयात्राओं पर तुलनात्मक रूप से बहुत कम ख़र्च हुआ है क्योंकि वे अपने साथ पत्रकारों की फ़ौज को नहीं ले जाते। उनकी यात्रायें सम्बंध सुधारने और विदेशी निवेश लाने के लिए हुई हैं जो बहुत सफल रही हैं।
आपका यह कहना भी गलत है कि मोदी जी कुछ नहीं कर रहे। उनका काम आपको नज़र नहीं आता तो यह आपकी दृष्टि की कमी है।
आपके लेख की अधिकांश बातों से मैं सहमत नहीं हूँ। आपने यह नहीं बताया कि मोदी जी की विदेशयात्राओं पर तुलनात्मक रूप से बहुत कम ख़र्च हुआ है क्योंकि वे अपने साथ पत्रकारों की फ़ौज को नहीं ले जाते। उनकी यात्रायें सम्बंध सुधारने और विदेशी निवेश लाने के लिए हुई हैं जो बहुत सफल रही हैं।
आपका यह कहना भी गलत है कि मोदी जी कुछ नहीं कर रहे। उनका काम आपको नज़र नहीं आता तो यह आपकी दृष्टि की कमी है।