कविता

कविता : एकाग्रता

लोहे के काम में टाटा
जुते के काम में बाटा
दुनियां में इतना नाम कर रहे है
और हम निट्ठले की तरह
अपना समय यूँ ही खो रहे है
जिसने समय की कीमत को
पहचान लिया
एकाग्र हो अपने लक्ष्य की
राह बुनता चला गया
उसी ने इतिहास में
नाम रच दिया
बाकि सभी ने अपना जीवन
व्यर्थ खो दिया
हम किस श्रेणी में आये
ये हमे चुनना है ।
हर चुनोतियों को लांघ
अपने लक्ष्य पर जाना है ।

— स्वाति “सरू”, जेसलमेरिया

 

स्वाति जैसलमेरिया

370 A/१ हरी निवास गांधी मैदान 3rd c road सरदारपुरा जोधपुर मो. 7568076940

2 thoughts on “कविता : एकाग्रता

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह !

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह !

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