“मत्तगयंद/मालती सवैया”
आज का छंद है मत्तगयंद/मालती सवैया
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मोहन मान बिना कब आवत नाचत मोर घना वन राचें
चातक जाचक देखत है रुक मांगत है घर पावस बांचे।।
बोलति बैन न बांसुरि रैन नहीं दिन चैन कहां मन पाए।
हे मन मोहन आपहि राखहु मांगत हूँ कर जोर लजाए।।
— महातम मिश्र
अच्छी रचना !
सादर धन्यवाद आदरणीय, मन आश्वस्त हुआ