कुण्डली/छंद

“मत्तगयंद/मालती सवैया”

आज का छंद है मत्तगयंद/मालती सवैया
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मोहन मान बिना कब आवत नाचत मोर घना वन राचें
चातक जाचक देखत है रुक मांगत है घर पावस बांचे।।
बोलति बैन न बांसुरि रैन नहीं दिन चैन कहां मन पाए।
हे मन मोहन आपहि राखहु मांगत हूँ कर जोर लजाए।।

— महातम मिश्र

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

2 thoughts on ““मत्तगयंद/मालती सवैया”

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी रचना !

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीय, मन आश्वस्त हुआ

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