शांति और विवेक
भारत, संसार का एकमात्र शांति उत्पादक देश है। भगवान गौतम बुद्ध तथा भगवान महावीर ने शताब्दियों पूर्व इस अति सूक्ष्म दैवीय गुण की खोज कर इसको कुटीर उद्योग के रूप में इस अति पवित्र पावन भूमि स्थापित किया था, ऐसा विद्वानों का मत है। मैं भी ऐसा मानता हूँ, क्योंकि विद्वानों की बात विद्वानों को ही समझ आती है! इन दोनों को अपने-अपने राजमहल का ऐश्वर्य, सुख, विलास और भोग उबाऊ लगने लगा था। परिणामस्वरूप उन्होंने जंगल की राह पकड़ी, जहाँ शांति की शोध के पश्चात् उसका उत्पादन आरंभ हुआ। समय के साथ यह उत्पादन इतना फला-फूला कि हम इसके सबसे बड़े निर्यातक हो गये। सम्राट अशोक जैसे अनेक राजाओं ने ‘अशोक ब्रांड’ शांति को विश्व के कोने-कोने तक पहुँचाया।
परिणाम यह हुआ कि शांति की तलाश में विदेशियों का आगमन बढ़ गया, जिन्होंने उत्पाद मचा-मचाकर इस देश की शांति का सत्यानाश कर दिया। कालांतर में इन्हीं में से अनेक देशों ने शांति के लिए अपने पड़ोसी देशों से वर्षों तक युद्ध भी किया और परमाणु बम भी बनाए। उनके सामने ‘भारत’ के पहले ‘महाभारत’ का भी उदाहरण था कि शांति हमेशा युद्ध के बाद ही आती है- लातों के भूत, बातों से नहीं मानते। हमारे देश में भगवान श्री कृष्ण ने शांति के लिए रणछोड़दास बनना पड़ा था। वे शांति की खोज में मथुरा से संपूर्ण यादव प्रजाति के साथ द्वारका पहुँचे थे। किंतु शांति वहाँ भी अधिक दिन तक नहीं टिक सकी। बलराम ने पूरी द्वारका को हल से समुद्र में डुबा कर ठंडा कर डाला। तब जाकर पूरी शांति मिली।
विद्वान यह भी कहते हैं कि क्रोध, शांति का दुश्मन होता है। भारतीय परिवारों में एक पुरुष होता है, जो समय-समय पर परिस्तिथियों के अनुसार पति या पिता कहलाता है। यह कभी शांत नहीं होता, क्योंकि क्रोध करना इसकी नीयति होती है। कभी तो लगता है उसका गुस्सा या क्रोध ही उसे पति या पिता के पद पर सुशोभित करता है। हमारी संस्कृति के पुरुष प्रधान होने का एक बड़ा कारण यह भी है। इस दृष्टिकोण से मेरा परिवार भारतीय संस्कृति से अछूता है, क्योंकि मैं गुस्सा नहीं करता। इसका मतलब कि मैं ‘पुरुष’ नहीं हूँ। मैं ‘महापुरुष’ हूँ। पत्नी प्रसन्न रहती है कि -‘बढ़िया आदमी मिला जो गुस्सा नहीं करता।’ पुत्र आल्हादित रहता है कि-‘कुछ भी करो बाबू जी नाराज नहीं होते।’ भाइयों को निष्ंिचंतता है कि-‘सीधा आदमी है बाद में कोई लफड़ा नहीं करेगा।’ पड़ोसी, मित्र, सहयोगी सभी आनंदित रहते हैं कि-‘ये पुरुष, ‘पुरुष’ नहीं ‘महापुरुष’ है और उन तुच्छ लोगों के साथ रह रहा है।’ मैं क्रोध नहीं करता।
क्रोध नहीं करना चाहिए। क्रोध मनुष्य का शत्रु होता है। क्रोध का आरंभ पागलपन से होता है और समापन पश्चाताप पर। क्रोध करने से मनुष्य का विवेक नष्ट हो जाता है और वह पशु हो जाता है। आदि…आदि। अनेक सुविचार हैं जो क्रोध की महानता को पारिभाषित करते हैं। इस दृष्टिकोण से पिछले वर्श देश की सड़कों पर ‘पशुमेला’ चलता रहा। सारे साल देशवासी गुस्से में उबलते रहे। लगता सड़क पर अमिताभ बच्चनों की भीड़ चली जा रही है-एंग्री यंग मेन्स। कहीं घोटालों की आँच ने गुस्से के मारे नागरिकों की खून में उबाल ला दिया तो कभी हारती हुई क्रिकेट टीम ने लोगों का पारा सातवें आसमान तक पहुँचा दिया।
कभी-कभी देश की महान विभूतियों ने अपने बयानों से ऐसी गरमी बढ़ाई कि नागरिकों ने मुट्ठियाँ भींच ली। हमारी सरकार समय-समय पर पेट्रोल, केरोसिन और गैस की कीमतें बढ़ाकर इस देश के क्रोध की आग में घी डालती रही। आरक्षण की अंगीठी पर राजनीति की चाय उबलती रही और देश का लायक जवान क्रोध के मारे अपने बाल नोचता रहा।
क्रोध का दूध तो तब उफान मारकर पतीली के बाहर निकल पड़ा जब दिल्ली में ‘दामिनी’ का बलात्कार हो गया। लोग ऐसे सुलगे कि अंदर का प्रकाश मोमबत्ती बनकर सड़कों पर बिखर पड़ा। जैसे-जैसे मोमबत्तियों की संख्या बढ़ी, बलात्कारियों के हौसले बढ़ते गए। उन्होंने दूने जोश से बलात्कार करना आरंभ कर दिया। किराने के दुकानदार खुश थे कि चलो एक झटके में सारी मोमबत्तियाँ बिक गईं वरना अगले वर्ष की दीपावली का इंतजार करना पड़ता।
इस वर्ष की शुरुआत घनघोर क्रोध से हुई। मुझे लगा कि अब वह समय आ गया है जब मुझे एंग्री यंग मेन बन जाना चाहिए। वरना मेरा यह जन्म व्यर्थ है। लोग कहेंगे-‘शरद, धिक्कार है तुम्हें। गुस्सा करने का इतना अच्छा अवसर निकल गया और तुम शांत बैठे रहे।’ देखो ना हम पड़ोसी धर्म निभाकर क्रिकेट में हारते रह गये और वे सरहद पार कर हमारे छः बेटों को शहीद कर गए। सिर उखाड़ कर ले गये अपने चैराहों पर सजाने के लिए। हम फिर मोमबत्ती जलाते रह गये, शांति जाप करते रह गए और अंिहंसा के कबूतर उड़ाते रह गए- वसुधैव कुटुंबकम्।
मैं डाॅक्टर के पास अपनी भावनाएँ लेकर पहुँचा कि महोदय अब तो मुझे गुस्सा होने दीजिए। उन्होंने कहा- तुम्हें ऐसी छोटी-छोटी बातों के लिए परेशान नहीं होना चाहिए। तुम्हें हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत है। अगर ठीक मात्रा में गुस्सा नहीं हुए तो हार्ट अटैक से मर जाओगे। देश का एक महापुरुष कम हो जाएगा। तुम शांत बहुत सुंदर लगते हो। शांत रहो। तुम ही तो हो जो देश को शांति का नोबल पुरस्कार दिला सकते हो।
मैंने कहा-‘डाॅक्टर कोई बात नहीं। मुसझे आप गुस्सा होने का यह अवसर मत छीनिए। मैं गुस्सा होना चाहता हूँ।
डाॅक्टर बोले- क्या करोगे गुस्सा होकर। तुम देश के साधारण नागरिक हो। तुम्हें गुस्सा करने का कोई अधिकार नहीं। तुम विवेकवान बनों। क्रोध, मनुष्य का दुश्मन है। विवेकवान मनुष्य शांत होता है। विवेकवान बनो।
तब से मैं विवेकवान हो गया हूँ। जैसे ही कोई गाली देता है मैं मुस्कुराकर अपना विवेक निकालता हूँ और उसे चाटने लगता हूँ।
— शरद सुनेरी
बहुत शानदार व्यंग्य !