गीत/नवगीत

गीत

कोई अमीर है, कोई गरीब है
बस अपना अपना नसीब है

मुलाकात अपनी ना हो सकी
तू भी फासलों पे कुछ रहे
मैं भी देखूँ दूर दूर से
यहाँ कौन किसके करीब है
बस अपना अपना नसीब है

मैं ना कह सका मेरे दिल की बात
कई खत लिखे हुए रह गए
कासिद कोई मिला नहीं
हर शख्स जैसे रकीब है
बस अपना अपना नसीब है

हूँ अपनी ही मैं कैद में
तू भी कँहा आज़ाद है
तेरे पाँव में सोने की बेड़ियाँ
यहाँ मुफलिसी का सलीब है
बस अपना अपना नसीब है

कोई खाने को मीलों चले
कड़ी धूप में घण्टों जले
कोई ज्यादा खा के है मर रहा
ये दुनिया कितनी अजीब है
बस अपना अपना नसीब है

तुझे भूलने की चाह में
मैंने अपनी ज़ात को खो दिया
मेरी लाश तक है तड़प रही
ये दर्द कितना ज़दीद है
बस अपना अपना नसीब है

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]