ग़ज़ल
मासूम से ये बच्चे, खेले हैं गोलियों से
समझे न भूखा बचपन, सपने हैं रोटियों से
पर्वत की पीर पूछो, उस बावली घटा से
कुहरे में जा छिपा है, डरता है बिजलियों से
सरहद पे बेटा बैठा, आँखों में माँ की आँसू
अखबारों से डरे वो, डरती है आहटों से
दिल तो पड़ा है घायल, नश्तर चुभा है ऐसा
यारब मुझे बचा ले, दिलदार के गमों से
मय्यत उठाने आए, सब यार दोस्त मेरे
मिट्टी बिलख के रोती, यारों के कहकहों से
कहती है रेणु लोगों, चहरों का दर्द पढ़ लो
रोई हैं कितनी आँखें, पूछो इन आँसुओं से
— रेनू मिश्रा