बजट के पहले और बाद
बजट से पहले–
आम बजट हो खास बजट हो
राहत का अहसास बजट हो
खाना मिले पेट भऱ सबको
छत का भी आभास बजट हो
जान न दे कोई किसान अब
उसके लिये विकास बजट हो
अन्नपूर्णा हों घर घर मेँ
ऐसा खासम खास बजट हो
वेतन भोगी को राहत हो
जनता का मधुमास बजट हो
सभी विरोधी होंय निरुत्तर
ऐसा कुछ सायास बजट हो
प्रगति होय ट्रेनें भी दौड़ें
भारत मे उल्लास बज़ट हो
बजट के बाद–
माननीयों के अच्छे दिन आये
वेतन भोगी पछताये
ना कुछ पाया ना कुछ खोया
और नही कुछ ख़ास किया है
भारत के वेतन भोगी को
क्यों कर बहुत निराश किया है
गुजर गये दो बरस
आयकर स्लेब रहा जैसा का तैसा
क्या गलती थी बेचारो की
जो वो बने नौकरी पेशा
अपने मानदेय और भत्ते
सबने जम कर खूब बढ़ाये
लगता सिर्फ माननीयों के
भारत में अच्छे दिन आये
हवा हवाई बाते करके
खूब सुनाई मस्त कहानी
मिडिल क्लास को बजट देख कर
याद आ गयी अपनी नानी
— मनोज श्रीवास्तव, लखनऊ
अच्छी व्यंग्य कविता !
अच्छी व्यंग्य कविता !